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बालासोर रेल दुर्घटना का जिम्मेदार यात्री!

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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समसामयिक चिंतन…

हर दुर्घटना के बाद उस घटना का पोस्टमार्टम किया जाता है। उसके बाद उस घटना की जिम्मेदारी के लिए कर्मचारी, पटरी, चालक, संकेत और मशीनी की गड़बड़ी की जांचें होती है। उसके लिए विभागीय, सीबीआई जांचें आदि होने के बाद कोई दोषी नहीं पाया जाता है या इतनी लम्बी जाँच का समय लगता है कि, गवाह, साक्ष्य आदि ख़तम हो जाते हैं या वे उस घटना को भूल जाते हैं। विभागीय जाँच से यदि कोई दोषी सिद्ध होता है, तो उसे विभागीय जाँच में १-२ वेतनवृद्धि रोक दी जाती है।
रेल विभाग हमारे देश का बहुत पुराना विभाग माना जाता है। वर्ष १८५५ से लेकर आज तक जितनी भी गलती हुई है और बचाव के दोष से मुक्त नियम बनाए गए हैं, पर मानव की बुद्धि के सामने नियम बनाने के पहले ही उसमें तोड़-जोड़ लेते हैं। कर्मचारी और अफसरों की मिलीभगत से बहुत-सी अनियमिताएं होती हैं और की जाती हैं। क्या करें, यह विश्व की प्रथम संस्था है जो सुविधायुक्त, सस्ती सेवा और बहुत विशाल है। स्वंत्रता के बाद धीरे-धीरे कोयला इंजिन, डीजल इंजिन का प्रयोग किया गया और अब विद्युत इंजिन का प्रयोग किया जा रहा है। रेल का परिवहन पटरियों पर होता है, उनमें भी परिवर्तन और परिवर्धन किया गया और जा रहा है।
केंद्र सरकार के अधीन होने के कारण इसमें राज्य और स्थानीय प्रशासन का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। यह एक स्वयं सक्षम संस्था है, जिसमें लाखों कर्मचारी-अधिकारी कार्यरत है। इसकी सुरक्षा भी इनके अधीन ही है तथा इसका रखरखाव भी।भारत में रेलमंत्री सबसे सशक्त मंत्री माना जाता है और सबसे अधिकतम बजट इसका होता है। माल गाड़ियों के साथ यात्री गाड़ियों से परिचालन होने से आय का साधन सुगम और भरपूर होता है। इसमें समय-समय पर सुधार बहुत हुए हैं। रेल का स्वयं इतना बड़ा स्वतंत्र विभाग है, जिसमें सबसे योग्य और शिक्षित अधिकारियों का झुण्ड रहता है, और वे दिन-रात कार्यरत रहते हैं। हमारा देश अन्य देशों की रेल व्यवस्था का अध्ययन कर उसे अपनानाते भी हैं, पर इतने वर्षों बाद भी हम पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सके हैं। जितने संभव प्रयास किया जाना चाहिए, पर हमारे देश में अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, भाई- भतीजावाद, राजनीतिक हस्तक्षेप और रेलवे का निजीकरण होने के कारण पर्याप्त उपलब्धि न मिल रही है और न हो पाएगी। कारण कि निजीकरण से वन्दे भारत, शताब्दी आदि जो भी ट्रेनें चलाई जा रही हैं, उसमें अधोसंरचना का दायित्व रेल विभाग का ही होगा। यानी निजी कम्पनियाँ मलाई खाने के लिए हैं और उनको रखरखाव से कोई मतलब नहीं है। चूंकि, अधोसंरचना का व्यय बहुत होता है, इसलिए उससे निजी क्षेत्र बचा रहता है। जब तक अधोसंरचना की मजबूती नहीं होगी, तब तक ऐसा होता रहेगा। द्रुतगामी रेलों का सञ्चालन खतरनाक होता है। कारण पुरानी पटरियाँ, उनका प्रबंधन द्रुतगामी रेलों का भार सहन करने के अनुकूल नहीं है।
बालासोर रेल दुर्घटना के बाद एक प्रश्न यक्ष जैसा खड़ा है कि, जब फरवरी २०२३ में रेलवे की वरिष्ठतम अधिकारी द्वारा पहले से संकेत दिए गए थे और उनका पालन करना अनिवार्य था, तब जिम्मेदार मंत्री, बोर्ड और सक्षम अधिकारियों द्वारा कोई भी संतोषजनक कदम क्यों नहीं उठाए गए ? घटना के बाद गुण-दोष पर चर्चा कर हम हुई मौतों को वापिस ला सकेंगे ? क्या उनमें मृतकों में कोई अधिकारी-मंत्री के निजी की मौत हुई ?नहीं, क्योंकि वे सब अपने लिए सुरक्षित वाहनों-साधनों का उपयोग करते हैं। जब उनके परिजनों की मौत होने पर उनको उस पीड़ा को भोगना पड़ता, तब समझ में आता, पर आज वे सब सुरक्षित हैं।
प्रधानमंत्री, रेलमंत्री और अधिकारियों द्वारा घड़ियाली आँसू बहाकर अपने कर्तव्य की पूर्ति कर उस अध्याय को समाप्त कर दिया जाता है। हम भरपूर यात्री किराए का भुगतान कर यात्रा करते हैं। यात्रा टिकिट लेने के बाद यह सेवा का क्षेत्र बनकर उसका सम्पूर्ण उत्तरदातित्व होता है कि, वह विभाग हमें सुरक्षित स्थान तक भुगतान के स्थान तक पहुंचाए, पर आजकल रेल का किराया आसमान जैसा महंगा और सुविधाएं कमतर होती जा रही हैं। फास्ट और विशेष रेल के नाम पर महंगी टिकिट होती है, और पटरियाँ, संकेत, कमजोर व्यवस्था।

बालासोर घटना के मुख्य आरोपी यात्री हैं, जिन्होंने रेल में यात्रा की। आज तो हर दिन दुर्घटना का होना आम बात है और सरकार दुःख पर श्रद्धांजलि देकर इतिश्री कर देती है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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