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बेटी

राजेश पड़िहार
प्रतापगढ़(राजस्थान)
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भारी उसका पेट था,सास चाहती लाल।
लेकिन किस्मत चल गयी,देख अनोखी चाल।
देख अनोखी चाल,जनी है उसने बेटी।
खोल रही है सास,रोज तानों की पेटी।
साफ चमकती आज,सास की है लाचारी।
चली सदन ‘राजेश’,बहू के पद थे भारी।

मिलती रही प्रताड़ना,गरल उतारे नार।
गुड़िया के डग ले रहे,रोज नये आकार।
रोज नये आकार,डोलती छम्मा-छम्मा।
बुरे-बुरे से बोल,बोलती दादी अम्मा।
कहे वचन ‘राजेश’,कली बागों में खिलती।
बड़े भाग है आज,अगर जो बेटी मिलती।

समझी सासू तो नहीं,बेटी का क्या मोल।
तुतलायी-सी बोलती,गुड़िया प्यारे बोल।
गुड़िया प्यारे बोल,सुने वह कान लगाये।
धीरे-धीरे देख,सास को पोती भाये।
कहन लगे ‘राजेश’,कड़ी मन की यों सुलझी।
बेटी है अनमोल,सास तो अब है समझी।

परिचय-राजेश कुमार पड़िहार की जन्म तारीख १२ मार्च १९८४ और जन्म स्थान-कुलथाना है। इनका बसेरा कुलथाना(जिला प्रतापगढ़), राजस्थान में है। कुलथाना वासी श्री पड़िहार ने स्नातक (कला वर्ग) की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय (केश कर्तनालय)है। लेखन विधा-छंद और ग़ज़ल है। एक काव्य संग्रह में रचना प्रकाशित हुई है। उपलब्धि के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान में उल्लेखनीय योगदान हेतु जिला स्तर पर जिलाधीश द्वारा तीन बार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। आपको शब्द साधना काव्य अलंकरण मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी के प्रति प्रेम है।

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