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मन प्रभु में क्यों न लगाया !

मुकेश कुमार मोदी
बीकानेर (राजस्थान)
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अति सुन्दर भार्या मिली, पाई संस्कारी सन्तान,
तेरा भी तन रूपवान, दौलत पाई कुबेर समान।

अपने जीवन में तुमने, इतना सब-कुछ है पाया,
फिर भी अपना मन तूने, प्रभु में क्यों न लगाया!

स्वजन और परिजन का भी, पाया सुख अपार,
चारों और फैला हुआ, तेरी महिमा का विस्तार।

हर किसी ने अपना सर, तेरे कदमों में झुकाया,
फिर भी अपना मन तूने, प्रभु में क्यों न लगाया!

जीवन भर सुख की घड़ियाँ, होती रहती उत्पन्न,
ज्ञान का तुझमें भण्डार, तर्कशक्ति से तू सम्पन्न।

विघ्न भी तेरे जीवन में, चलकर कभी न आया,
फिर भी अपना मन तूने, प्रभु में क्यों न लगाया!

घर-परिवार समाज में, सदा ऊंचा है तेरा स्थान,
जहां भी तू जाए वहां, मिलता तुझे पूरा सम्मान।

तुझसे मिलकर जब, सबका मन रहता हर्षाया,
फिर भी अपना मन तूने, प्रभु में क्यों न लगाया!

मिलने को आतुर रहता हो, तुझसे सारा संसार,
तेरे हस्तों से होता रहता, जन-जन का उपकार।

दु:ख का जीवन में तुमने, अनुभव कभी न पाया,
फिर भी अपना मन तूने, प्रभु में क्यों न लगाया!

क्या पाना शेष बचा, और क्या पाने की चाहत,
याद प्रभु को करेगा, तो मिलेगी मन को राहत।

मृत्यु का समय सबके, जीवन में अवश्य आया,
पड़े न पछताना कि, मन प्रभु में क्यों न लगाया॥

परिचय – मुकेश कुमार मोदी का स्थाई निवास बीकानेर में है। १६ दिसम्बर १९७३ को संगरिया (राजस्थान)में जन्मे मुकेश मोदी को हिंदी व अंग्रेजी भाषा क़ा ज्ञान है। कला के राज्य राजस्थान के वासी श्री मोदी की पूर्ण शिक्षा स्नातक(वाणिज्य) है। आप सत्र न्यायालय में प्रस्तुतकार के पद पर कार्यरत होकर कविता लेखन से अपनी भावना अभिव्यक्त करते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-शब्दांचल राजस्थान की आभासी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त करना है। वेबसाइट पर १०० से अधिक कविताएं प्रदर्शित होने पर सम्मान भी मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना है। ब्रह्मकुमारीज से प्राप्त आध्यात्मिक शिक्षा आपकी प्रेरणा है, जबकि विशेषज्ञता-हिन्दी टंकण करना है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की जागृति लाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-‘हिन्दी एक अतुलनीय, सुमधुर, भावपूर्ण, आध्यात्मिक, सरल और सभ्य भाषा है।’

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