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महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह हुए स्मृति शेष

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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विश्वविख्यात वैज्ञानिक-गणितज्ञ आइंस्टीन और गौस के सिद्धांतों को चुनौती देकर प्रसिद्धि पाने वाले महान गणितज्ञ नहीं रहे। नासा में अपोलो मिशन शुरुआत के दौरान ३० कम्प्यूटर अचानक असफल हो गए,उसी क्षण पेन से सटीक जोड़ देकर अभियान सफल कराने वाले महान गणितज्ञ हमें छोड़कर चले गए। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर शोध करके विश्व को नई दिशा देने वाले महान गणितज्ञ को हमने खो दिया।
बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में २ अप्रैल १९४२ को एक ऐसे होनहार शिशु का जन्म हुआ,जो शाला में पढ़ते हुए ही पाटलीपुत्र के मूर्धन्य गणितज्ञों को चौंका दिया था। मैट्रिक की परीक्षा इन्होंने १९६२ में उत्तीर्ण की। इन्हें शिक्षकों का असीम स्नेह एवं उत्साहवर्द्धन सदैव मिलता रहा। एक बार पटना में अमेरिका के गणितज्ञ प्रो. कैली आए। इस बालक की प्रतिभा की ज्योति उन तक पहुँची। आपसी मुलाकात के बाद प्रो. कैली इन्हें कैलीफोर्निया में सादर आमन्त्रण देकर गए। १९६३ में भारत का यह सपूत कैलीफोर्निया के लिए रवाना हो गया। वहाँ रहते हुए इन्होंने चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर विश्व प्रसिद्ध शोध किया। तदनन्तर वाशिंगटन में गणित के प्राध्यापक बन गए।
१९७१ में वाशिंगटन से इनका भारत आगमन हुआ। यहाँ आकर इन्होंने आई.आई.टी.(कानपुर) में गणित का प्राध्यापक बनकर सेवा की तथा जल्द ही सांख्यिकीय संस्थान(कोलकाता) में कार्यरत हुए।
अभी विवाह हुए केवल एक साल ही बीता था कि १९७४ से मानसिक दोरों का दौर शुरु हो गया। सर्वप्रथम मानसिक चिकित्सालय राँची में इलाज हुआ और फिर बंगलौर तथा दिल्ली में,किन्तु सरकारी उदासीनता हर कदम पर दिखती रही। सरकारी तन्त्र इस गणितज्ञ के इलाज में सर्वथा निष्क्रिय भूमिका में रहा। कुछ वर्षों तक उनका पता ही नहीं चला,और न किसी सरकार ने खोजने की कोशिश ही की थी…..। कई सारे संस्थान इनको गोद लेना चाहते थे, किन्तु इनकी माता जी ने पुत्र के प्रति स्नेह और स्वाभिमान से इसकी इजाजत नहीं दी।
इधर कुछ दिनों से आँख में मोतियाबिंद का ऑपरेशन होने के उपरान्त इनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी। जेब देश बाल दिवस मना रहा था,तब पटना में यह महान गणितज्ञ इस दुनिया से विदा हो गया। अंत समय में भी सरकारी तन्त्र तिरस्कृत करने की पुरानी आदत से बाज नहीं आया। कुकुरमुत्तों की तरह उगते नेताओं की कैद में तड़पती लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में ऐसे विश्वविख्यात गणितज्ञ श्रद्धेय वशिष्ठ नारायण सिंह की गुमनाम मौत कई अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है।

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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