पटना (बिहार)।
हमारे साहित्य समाज में राजनीति से भी अधिक गंदगी समा गई है। साहित्य की राजनीति तो खेली ही जा रही है, आगे बढ़ने के लिए अपने साथ चल रहे लोगों की टांगें भी खींचने की प्रवृत्ति तेज है। ऐसे में यह व्यक्तिगत सम्मान या अपमान की बात नहीं रह जाती, क्योंकि यह पूरे साहित्य समुदाय की बात होती है। साहित्यकार होने के बावजूद ऐसे व्यक्ति के साहित्यिक लोभ आमजन से अधिक संकीर्ण होते हैं। महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे रचनाकार भी नए से नए लेखकों पर मेहनत करते थे।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में कवि-कथाकार सिद्धेश्वर ने आभासी ‘तेरे मेरे दिल की बात’ के अंक (२२) में यह उद्गार व्यक्त किए। इस भाग में ‘नई प्रतिभाओं को उत्साहित करना क्या चर्चित साहित्यकारों के लिए समय की बर्बादी है ?’ के संदर्भ में आपने विस्तार से कहा कि, पहले के साहित्यकार जो लिखते थे, उस पर खुद अमल भी करते थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे रचनाकार, नए से नए लेखकों पर मेहनत करते थे। कभी-कभी पूरी रचनाओं को ही परिमार्जित किया करते थे। पहले के साहित्यकार दूसरे साहित्यकार को आगे बढ़ाने के लिए एक-दूजे को सहयोग करते थे!, पर आज के अधिकांश साहित्यकार खेमे में बैठ गए हैं।
इस विचार पर परिषद की सचिव ऋचा वर्मा ने कहा कि, अगर आपकी बातों से, आपके कार्यक्रम से एक भी व्यक्ति लाभान्वित होता है, तो दस लोगों के मना करने पर भी आपको अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होना चाहिए।
निर्मल कुमार डे ने कहा कि आप सही हैं। आपको किसी की चिंता नहीं करनी है और न अपने को सही प्रमाणित करने की जरूरत है। राज प्रिया रानी ने कहा कि, साहित्य पर बोलने वाले लाखों मिल जाते हैं लेकिन साहित्य के सेवक गिने-चुने लोग ही होते हैं, जो साहित्य को एक नया आकाश दे जाते हैं। इंदू उपाध्याय और अनीता मिश्रा सिद्धि ने कहा कि आप अपना कार्य करते रहें।
डॉ. शरद नारायण खरे ने कहा कि, नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना समय की बर्बादी नहीं, बल्कि समय का सार्थक उपयोग है, क्योंकि इसके द्वारा ही नए लेखक ताज़गी व विविधता लाने के लिए सतत् अध्ययन और सृजन करते हैं। सिद्धेश्वर का यह प्रयास कई मायने में अनुकरणीय है।