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मेरा देश महान,यही मेरी पहचान

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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गणतंत्र दिवस विशेष….

‘मेरा देश महान’ -ये तीन देश के तिरंगे की आन-बान-शान हैं। ये शब्द देश के प्रत्येक नागरिक को देश-विदेश के सागर में आत्मविभोर करने की अद्भुत शक्ति रखते हैं। देशभक्ति सीखनी हो तो मूक प्राणियों में मछली से सीखो,जो बिना पानी के अपने प्राण त्याग देती है और चातक से सीखो,जो बारिश की पहली बूंद से ही अपनी प्यास बुझाता है और यदि बारिश न होने पर अपनी ज़िद्द से प्राण त्याग देता है। हमारे देश के नागरिकों की हालत आज उस कस्तूरी मृग-सी है,जिसकी सुंगध को ढूंढने के लिए वह व्याकुल हो वन वन भटकता रहता है। आज देश का प्रत्येक शिक्षित ऊंचाइयों को तीव्रता से छूने की अभिलाषा में अपना देश छोड़कर प्रवासी बनने की ललक रखता है। इस प्रयास में सफलता भी मिल जाती है,लेकिन अपनी देश की मिट्टी को बहुत से नागरिक साथ ले जाते हैं,किंतु परिस्थितियों वश लौटकर अपनी जन्मभूमि पर नहीं वापस आ पाते हैं।
भौगोलिक दृष्टि से हमारा देश विश्व के लगभग समस्त देशों से अधिक सम्पन्न है। अनेक छोटी-बड़ी नदियां,झरने,ऊंचे-ऊंचे पर्वत,घने वन,अनेक प्रकार के पशु-पक्षी,जीव-जंतु,अनगिनत प्रकार के वृक्ष, फलों व सब्जियों,अनाज आदि भी मिलते हैं। हमारे देश तीन ओर से घिरे हुए विशाल ३ सागर हैं। सांस्कृतिक व सभ्यता देश का स्वर्णिम आभूषण समान हैं। विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं व संस्कृति को मेरे देश की मिट्टी ने सींचा है। भिन्न-भिन्न जाति,समुदाय व धर्म के लोग इस भूमि पर जन्म ले स्वयं को प्रतिष्ठित किया है और इस भूमि पर जन्म लेने को आतुर रहे हैं। प्राचीन सभ्यता की देन वेद-पुराण के स्वर आज भी गूंजन होते हैं। विभिन्न परिधान व खुशियों के तीज त्यौहार इसी भूमि पर सब लोग अति जोश से मनाते हैं। नागरिकों में आपसी भाईचारे का मेला भी सुख-दुख में मौजूद रहता हैं। पंचतत्व से निर्मित पृथ्वी सबकी प्रथम माँ है,जिसकी पूजा हाथ जोड़ प्रात: जागते ही हाथ से छूकर करते हैं। सभ्य व शिक्षित नागरिक देश के नवनिर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दे कृतज्ञ होते हैं। मेरे देश के प्रत्येक राज्य की अपनी भाषा,पशु-पक्षी,फूल,फल,खेल आदि से सम्मानित है। मेरे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां १८ भाषाएं सम्मानित हैं,वही नागरिकों के अधिकार व कर्तव्य को भी सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने विचार प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता है। मेरे देश के लोग पशु-पक्षी,जीव-जंतुओं,वृक्षों,फूलों से भी मानवता रखते हुए देवी-देवताओं की भांति पूजनीय हैं। नित विकास की ओर मेरा देश अपनी औद्योगिक क्रांति से विश्वभर में प्रत्येक विषय पर अपना परचम लहरा रहा है,अंतरिक्ष से लेकर समुद्र तक,समुद्र से लेकर धरा के कण-कण तक। अत्याधुनिक संसाधन में विकास कर आज आत्मनिर्भर भारत बनने को वचनबद्ध है। अपनी मानवतावादी व अहिंसा नीति के कारण ही पड़ोसी देशों की विपत्ति व आपदाओं के समय घनिष्ठ मित्र की भूमिका भी सहज भाव से निर्वाह करता है। आज उच्च से उत्तर शिक्षा ग्रहण करना नवयुवकों का लक्ष्य है,वहीं सरकार भी समय-समय पर भिन्न-भिन्न योजनाओं द्वारा देश के सभी वर्गों के हित व आय में वृद्धि करने में सहायता कर रही है। मुझे गर्व है मेरे देश का एक-एक सैनिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता रखता है। मेरे देश के लोग दृढ़संकल्प व कड़े परिश्रम में विश्वास रखते हैं। स्त्रियों को सम्मान में देवी मानते हैं बालको में कृष्ण-राधा बसते हैं। दुश्मन के ललकारने पर यहां जवान गीता से उपदेश प्राप्त कर वीर अर्जुन बन जाता है। धन्य है! यह भूमि, जिस पर मेरा जन्म हुआ,कितने तप से इस पवित्र धरती को ऋषियों ने सींचा है। ऋणी हूँ,इस धरती की,मिला है मुझे ईश्वर से यह अवसर इस ऋण को अपनी सच्चे परिश्रम,विश्वास,ईमानदारी व सम्मान से चुका सकूं। सच में,मेरा देश महान,यही है मेरी पहचान।

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