कुल पृष्ठ दर्शन : 368

You are currently viewing मेरी अविस्मरणीय सिंगापुर यात्रा

मेरी अविस्मरणीय सिंगापुर यात्रा

डॉ. बालकृष्ण महाजन
नागपुर ( महाराष्ट्र)
***********************************

‘न भूतो न भविष्यति’, ऐसी मेरी अविस्मरणीय सिंगापुर में साहित्यिक यात्रा सभी साहित्यकारों के साथ हुई। यात्रा शुरू होने से पहले बहुत सारी भ्रमित कल्पनाएं मन में एक के पीछे एक आ रही थी। बचपन में हमारे चाचा जो नेवी से संबंध रखते थे, उनसे सुना था सिंगापुर के बारे में। तभी से अभी तक सिंगापुर के प्रति आकर्षण स्वाभाविक था। जबसे मैंने लेखन शुरू किया, तब से विदेश जाने संबंधी आकर्षण मन में होने लगा था-कब मुझे विदेश का सुअवसर प्राप्त होगा ? अचानक एक दिन फेसबुक पर सिंगापुर यात्रा संबंधी जानकारी देखी। बजट भी देखा, जो अपने बजट में था। मैंने समय न गंवाते हुए हिंदी अकादमी (मुम्बई) के डॉ. प्रमोद पाण्डेय से संपूर्ण जानकारी ली। मन को आश्वस्त किया और विदेश यात्रा के लिए अपनी सहमति दे दी। फिर मैंने अपने जिगरी दोस्त याने डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी (नागपुर) को यात्रा की जानकारी दी। पहले तो उसने साफ मना कर दिया। कुछ दिन बाद मित्र का फोन आया कि, वह भी सिंगापुर चलने के लिए तैयार है। फिर हमने सिंगापुर विदेश यात्रा की सारी प्रक्रिया शुरू कर दी। सिंगापुर में साहित्यिक यात्रा में परिचर्चा और काव्य पाठ कार्यक्रम की जानकारी समय-समय पर मिल रही थी। १९ जनवरी से २१ जनवरी २०२४ तक कार्यक्रम तय हुआ था। अब मन में यही तीव्र इच्छा हो रही थी कि, कब विदेशी यात्रा का दिन आएगा ? समय बीतता गया। सिंगापुर यात्रा करने के लिए हम दोनों मित्र नागपुर से विदर्भ एक्सप्रेस से मुम्बई के लिए १७ जनवरी को गाड़ी में बैठ गए। दूसरे दिन सुबह मुम्बई स्टेशन पर पहुंच गए। सुबह की नहाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद बड़ी सूटकेस को अमानती सामान घर में जमा कर दिया। अब पेट पूजा करने रेलवे कैंटीन में गए। फिर रात्रि में हवाई जहाज का टिकट होने से समय बिताने के लिए मैंने और साथ वाले ने मेरे मुंबई स्थित मित्र‌ से मुलाकात की। उसमें जलन भावना देखकर हम वहाँ से जल्द ही मनीष मार्केट की ओर बढ़ लिए। बीच में मुझे ज़ोर से प्यास लगी। पानी पीने की जगह मैंने गन्ने का २ बड़े ग्लास रस पी लिया। आगे बढ़ते-बढ़ते लोकल प्लेटफॉर्म पर मुझे अपने विभाग से सेवा निवृत्त विभाग प्रमुख धीरेन्द्र कुमार झा दिखाई दिए। काफी समय से मिलने के बाद बहुत सारी चर्चा हुई, सिंगापुर यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने अपना आशीर्वाद देकर अनुग्रहित किया, हमारा मनोबल बढ़ाया। अब १ घंटे के बाद अंधेरी स्टेशन पहुंच कर सामान लेकर स्टेशन के बाहर निकल गए। अब फिर एक बार पेट पूजा करने संबंधी निर्णय लिया। समय बीतता भी जरूरी हो गया था। फोन के वार्तालाप से एक जगह ५ साहित्यकार एकत्रित हो गए। आपस में परिचय के बाद एक प्रक्रिया शुरू हुई-बैग जमा करना, बैग की जांच के बाद अपने हवाई जहाज की उड़ान की प्रक्रिया का इंतजार करने लगे। तब तक सभी ने अपने-अपने डिब्बे खोले और काजू-बदाम का स्वाद लेने के बाद तिल्ली के लड्डू, मिल्क केक पेट के अंदर डाल दिए। तभी जहाज के उड़ान की सूचना स्पीकर सुनकर जहाज में अपनी सीट पर सभी आराम से बैठ गए।अब उड़ान भरना शुरू हो गया। मैंने थोड़ी देर के लिए आँखें बंद कर दी। अब हवाई जहाज स्थिर होने पर कान के पर्दे सुन्न हो गए। अब सीट बेल्ट खोल कर आराम से बैठ गया। कुछ क्षण पश्चात हवाई सुंदरी द्वारा पानी-चाय, बाद में स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेकर आँखें मूंद कर आराम करने लगे। फिर सिंगापुर में जहाज उतरने बाबत सूचना माइक से मिली। सीट बेल्ट लगाने के बाद हम सभी ने सिंगापुर की धरती पर पहली बार कदम रखा। जो स्वप्न में, कल्पना में महसूस किया था, वह वास्तव में देखने का सपना पूरा हुआ। अब हम सभी सामान लेकर हवाई अड्डे के बाहर सकुशल निकले। फिर हमें टूरिस्ट पास देकर नवाजा गया। समय न गंवाते हुए हम मेट्रो में चढ़ गए। एक स्टेशन आगे बढ़ ही रहे थे, तब पता चला कि, कोई महिला साथी पीछे छूट गई है।हम सभी अगले स्टेशन पर उतर गए और महिला साथी से मोबाइल पर संपर्क स्थापित कर उसे अगली मेट्रो में बैठने लिए कहा गया। मेट्रो आने पर उसी में हम सभी बैठ गए और उस महिला को सभी ने प्रश्नों से घायल कर दिया। मेट्रो से उतर कर एस्केलेटर में चढ़ने-उतरने की प्रक्रिया में सभी मशगूल हो गए। फिर हम पैदल यात्रा की सवारी करते-करते फोटो निकालते हुए अपने होटल कब पहुंच गए, पता ही नहीं चला। फिर सभी के निर्णय अनुसार होटल में एक जगह सामान रख कर सभी ने चैन की साँस ली। फिर खाली हाथ लिटिल इंडिया इलाके की ओर सैर करने निकल गए। जब पैदल चलते-चलते भूख सताने लगी, तो सभी की सहमति से भारतीय व्यंजनों पर टूट पड़े। फिर होटल में कमरा मिलने पर सामान रख आराम के फिर निकल पड़े सिंगापुर की खूबसूरती देखने के लिए। कभी बस, कभी मेट्रो से अच्छे पल को कैमरे कैद करते आगे बढ़ते स्वप्नों की नगरी को आँखों में बसाते हुए आगे बढ़ने लगे। पता ही चला कि, रात्रि के १२ कब गए। समय की गति कभी रुकी है, किसी के लिए। बस अब खाना खाकर अपने होटल के कमरे कब चिरनिंद्रा में चले गए, पता ही नहीं चला, क्योंकि सभी बुरी तरह थक जो गए थे। आगे दूसरे की सुबह कब दस्तक दी, पता ही नहीं चला। बताया गया था कि, सुबह नाश्ता काम्लेटरी है। हम सभी ने भरपूर नाश्ता किया और साहित्यकार निकल चले कार्यक्रम स्थल की ओर। हल्की बारिश के कारण हम टैक्सी से डी.ए.वी. स्कूल में पहुंच गए। वहाँ हमारा जोर-शोर से स्वागत हुआ।यहाँ पर अकादमी, मुंबई संगम एसोसिएशन और स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में इस कार्यक्रम का आयोजन था। शुरूआत स्वागत नृत्य से हुई। फिर परिचर्चा शुरू हुई।भारत से डॉ. ज्योति शर्मा ने इसका नेतृत्व किया। तत्पश्चात कवि सम्मेलन में १ भारत के कवि तो १ सिंगापुर के कवि की जुगलबंदी ज़ोर-शोर से चलती रही। मेरे द्वारा प्रस्तुत कविता के बोल कुछ इस तरह थे,-“उनकी एक मुस्कुराहट ने हमारे होश उड़ा दिए, हम होश में आ ही रहे थे, फिर वह मुस्करा दिए।” इसने सभी श्रोताओं का मन मोह लिया। बाद में सभी साहित्यकारों को बारी-बारी से मंच पर आसीन सिंगापुर के भारतीय उच्चायुक्त चान्सरी प्रमुख शिव तिवारी, अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. पाण्डेय, स्कूल के संस्थापक श्री राम, एसोशिएशन की अध्यक्ष डॉ. संध्या सिंह की उपस्थिति में शाल, स्मृति चिन्ह और प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया। तब हम सभी को विदेशी धरती पर सम्मानित किए जाने का गौरव हमें प्राप्त हुआ। फिर एक-दूसरे को आपस में संपर्क स्थापित करने का आश्वासन देकर हम भारतीय साहित्यकार अपनी होटल की ओर बढ़ लिए। कुछ क्षण पश्चात आपसी सहमति से जंगल नाइट सफारी करने हेतु स्थानीय बस से स्थान पर पहुंच गए। ठीक १ घंटे की नाइट सफारी हमने ट्राम से शुरू की। हम वहाँ रात्रि के समय दिखाई देने वाले शेर, जंगली जानवर देखकर हम डर के मारे भयभीत भी हो रहे थे और विलक्षण अनुभव से फोटो खींच कर आनंद महसूस कर भी रहे थे। फिर वापस अपनी होटल की ओर बढ़ लिए, लेकिन गुजरात की होटल में रात्रि में देरी से पहुंचने के बाद भी भोजन का स्वाद लेकर होटल पहुंचे। जब आँख खुली तो पता चला कि, आज अपना होटल खाली करना है। फिर अपना सामान लेकर नीचे पहुंच गए। अब हम भरपेट नाश्ता करके अपना सामान स्टोर रूम में रहते हुए आगे सिंगापुर दर्शन हेतु निकल पड़े। बस में बैठने के बाद वहाँ की ईमारतों की तस्वीरें मोबाइल फोन में कैद करना ना भूले। आगे हम मेट्रो से यूनिवर्सल पाइंट की ओर आए। वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य ने हम सभी का मन मोह लिया। फिर हम वापसी यात्रा में बड़े दुःखी होकर खाना खाकर होटल से सामान लेकर चल पड़े अंतिम पड़ाव पर। मेट्रो से एयरपोर्ट पर आकर सर्वप्रथम टूरिस्ट पास बड़े दुःखी होकर वापस किए। मन में अब उभर आया था कि, हम सभी कभी भी सिंगापुर ना छोड़ें, लेकिन जहाज हमारा बड़ी बेरहमी से इंतजार कर रहा था। सभी साथी बिछुडने के ग़म में डूबे हुए थे। डॉ. पाण्डेय ने हमारे मन की बात जानकर मोबाइल पर हम सभी का सिंगापुर यात्रा के बारे में साक्षात्कार ले लिया। तभी मेरी कलम कहने लगी,-“आज फिर आइना झूठ पकड़ा गया, दिल में दर्द था, लेकिन चेहरा मुरझा हुआ पकड़ा गया।” वहीं से टर्मिनल २ से सभी साथी बिछड़ गए। हम बिना हँसी-मजाक किए गंभीर रूप धारण करके अपने देश में पहुंचने के लिए जहाज में बैठ गए। फिर हमें ना खाने में रुचि थी, ना पीने में। एक झपकी लेते ही अपने देश यानि मुम्बई में पहुंच गए। अपना सामान लेकर बड़े दुःखी होकर आगे इसी तरह अगली यात्रा की योजना को सभी मूक समर्थन देते हुए अपने गंतव्य स्थान के लिए अपने वाहन से निकल पड़े। हम भी आटो से अंधेरी स्टेशन पर पहुंच कर लोकल ट्रेन से छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल से सुबह गीतांजलि एक्सप्रेस से बैठकर शाम को नागपुर में सभी सिंगापुर की यादें लेकर अपने घर सकुशल पहुंच गए। रात्रि में वही यात्रा की तस्वीरें आँखों के सामने आने लगी। नींद ने कब करवट ली, पता ही नहीं चला। १-२ दिन की यात्रा हम सबको इतना मोह सकती है और यादें हमें इतना गंभीर बना सकती है, यह बात मेरे ज़हन में घर कर गई। इस तरह से मेरी यह विस्मरणीय सिंगापुर यात्रा सफल रही।

परिचय- नागपुर (महाराष्ट्र) निवासी डॉ. बालकृष्ण रामभाऊ महाजन की जन्म तारीख १० अक्टूबर १९६१ और जन्म स्थान नागपुर है। आप वर्तमान में नागपुर स्थित सुरेंद्र नगर में स्थाई तौर पर निवासरत हैं। एम.ए. (मराठी, हिंदी, अर्थशास्त्र), एम.फिल. (हिन्दी), पीएच-डी. (हिन्दी) शिक्षित और साहित्य रत्न प्राप्त डॉ. महाजन का कार्य क्षेत्र मध्य रेलवे (नागपुर से सेवानिवृत्त) रहा है। इनकी सामाजिक गतिविधियाँ लेखन (गीत, ग़ज़ल, लेख, व्यंग्य कविता, कहानी, नुक्कड़ नाटक आदि) है तो १० पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ लगातार प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार के नाते वर्ष २०१८ में हिन्दी साहित्य अकादमी
(महाराष्ट्र) से नुक्कड़ नाटक ‘आओ मिलकर भारत जोड़ें’ को २५ हजार ₹ एवं सम्मान, २०२३ में ‘आओ अपना देश संवारें’ नुक्कड़ नाटक को अकादमी (महाराष्ट्र) द्वारा स्वर्ण पदक, ३५ हजार ₹ एवं सम्मान, २०२३ में साहित्य गंगा अकादमी (जलगांव) और २०२४ में युगधारा फाउंडेशन (उप्र) से व्यंग्य कहानी संग्रह ‘आप मेरे सब कुछ’ को ११०० ₹ व सम्मान मिला है। विशेष उपलब्धि १२२ बार रक्तदान करना है। नाटक लेखन में प्रवीण डॉ. महाजन ने यू-ट्यूब पर ६० लघु नाटिकाओं का लेखन, निर्देशन और अभिनय भी किया है। इनकी लेखनी का उद्देश्य सम-सामयिक विषयों पर समाज में जनजागरण का प्रयास करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक प्रेमचंद को मानने वाले डॉ. महाजन का लक्ष्य साहित्य अकादमी (दिल्ली) एवं ज्ञान पीठ पुरस्कार पाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार- ‘विश्व भाषा के रूप में हिंदी को प्रथम स्थान मिले, यही कामना है।’