अवधेश कुमार ‘आशुतोष’
खगड़िया (बिहार)
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मैं बंजर में गुल को खिलाने लगा हूँl
जमीं आसमां को हिलाने लगा हूँl
मैं पीता नहीं था कभी शौक से भी,
कि सोहबत में पड़ के पिलाने लगा हूँl
कि जिसकी निगाहों ने घायल किया दिल,
उसी शोख से दिल लगाने लगा हूँl
लगी चेहरे पे है कालिख़ दगा की,
कि सबसे नज़र अब चुराने लगा हूँl
हकीकत यही है बड़ा बेवफा हूँ,
कि बीबी से आँखें बचाने लगा हूँl
यकीनन मुझे प्रेयसी फिर मिलेगी,
कि राहों में आँखें बिछाने लगा हूँl
कि कहना सिखाया है जिसने ग़ज़ल को,
उन्हें ही ग़ज़ल अब सुनाने लगा हूँll
परिचय-अवधेश कुमार का साहित्यिक उपनाम-आशुतोष है। जन्म तारीख २० अक्टूबर १९६५ और जन्म स्थान- खगरिया है। आप वर्तमान में खगड़िया (जमशेदपुर) में निवासरत हैं। हिंदी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले आशुतोष जी का राज्य-बिहार-झारखंड है। शिक्षा असैनिक अभियंत्रण में बी. टेक. एवं कार्यक्षेत्र-लेखन है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेते रहते हैं। लेखन विधा-पद्य(कुंडलिया,दोहा,मुक्त कविता) है। इनकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें-कस्तूरी कुंडल बसे(कुंडलिया) तथा मन मंदिर कान्हा बसे(दोहा)है। कई रचनाओं का प्रकाशन विविध पत्र- पत्रिकाओं में हुआ है। राजभाषा हिंदी की ओर से ‘कस्तूरी कुंडल बसे’ पुस्तक को अनुदान मिलना सम्मान है तो रेणु पुरस्कार और रजत पुरस्कार से भी सम्मानित हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी की साहित्यिक पुस्तकें हैं। विशेषज्ञता-छंद बद्ध रचना (विशेषकर कुंडलिया)में है।