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‘युवा नशेड़ी…’ ऐसा ऊल-जलूल कब तक बोलोगे युवराज ?

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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अखिल भारतीय कांग्रेस के भविष्य युवराज यानि राहुल गांधी ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का देशव्यापी उदाहरण प्रस्तुत किया है। वाराणसी में जनसभा में युवाओं को ‘नशेड़ी’ कहकर (भले ही जोश व दूसरे संदर्भ में) प्रधानमंत्री बनने की हसरत रखने वाले राहुल गांधी युवाओं और कार्यकर्ताओं की भी नजर में फिर गिर गए हैं। अभी तक यह बात समझ में नहीं आई है कि, आखिर राहुल गांधी को ऐसा बोलने की सलाह कौन समझदार देता है ? भाजपा इस मुद्दे को एक बार फिर हवा दे या नहीं, और भले ही कांग्रेसी इसे बेफिजूल की राजनीति कहें, लेकिन यह वास्तविकता अनेक कांग्रेसी फिर स्वीकार रहे हैं कि, राहुल गांधी का कांग्रेस में और कांग्रेस का राहुल गांधी में भविष्य नहीं है। इससे इतर यह भी कि, यह ऊल-जलूल काम कब तक चलेगा ? हर बार किसी ना किसी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यही देखा गया है कि, इस जुबान को अति उत्साह में चलाने की वजह से ही संगठन को अधिक नुकसान सहना पड़ा है।
राजनीतिक दलों में सबसे पुराने संगठन की ऊपर से मजबूरी है कि, इनको सबसे आगे रखा जाता है, लेकिन यह अधिक शिक्षित बनाम योग्य होकर भी जुबान से बिल्कुल संयमी नहीं हैं। पहले भी अनेक मौकों पर राहुल गांधी अपना बचपना दिखाने से पीछे नहीं रहे हैं। यही वजह है कि, कई छोटे-बड़े कांग्रेसी इनके बारे में अनेक बार स्वयं को बचाते हुए कड़ी बात बोल चुके हैं।
दरअसल, गलत सलाहकारों की वजह से ही राहुल गांधी और संगठन अब तक काफी नुकसान उठा चुका है। प्रबल संभावना है कि, बोलने की आदत बनाम स्वयं को ही ज्ञानी मानने वाले राहुल गांधी की जुबान से आगे भी ऐसा नुकसान होता रहेगा।
राहुल गांधी को तो अब तक यही बात समझ में नहीं आई है या फिर संगठन-परिवार की प्रमुख और बड़ी सोनिया गांधी सहित संगठन के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी यह समझ पाए हैं कि सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में भाषा और बोलने पर कितना नियंत्रण रखा जाना चाहिए।
अगर इस बार राहुल गांधी की जुबान फिसलना मान भी लें, तो पहले क्या हुआ था, यह भुलाया नहीं जा सकता है। कांग्रेस संगठन जिसे देश का प्रथम नेतृत्वकर्ता बनाने को भिड़ा हुआ है, उसकी जमीनी स्थिति आज भी कमजोर है।
याद कीजिए कि, कांग्रेस दल के राष्ट्रीय मुखिया रहे राहुल गांधी ने जिस तरह पहले संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोपों का बयानी हमला किया था और उनको फिर खड़े होने को बाध्य किया। बाद में प्रधानमंत्री के गले पड़ने-लगने के नाम पर जो अपरिपक्वता दिखाई थी, वही आज भी साबित हुई है। कहना गलत नहीं होगा कि, आयु के लगभग ५० वसंत पार कर चुके गांधी परिवार के इस चिराग में अभी भी सकारात्मकता की लौ नहीं आई है। पहले की भाँति देश के प्रधानमंत्री के प्रति उनकी देह भाषा व हाव-भाव आज भी उन पर हमले से अधिक ख़ुद के लिए हास्यास्पद हैं। पूर्व में संसद जैसे सर्वोच्च सदन में श्री गांधी का यह व्यवहार उनके दल सहित वरिष्ठ नेताओं के लिए भी बेहद स्तरहीन एवं चिंताजनक रहा है।
कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि, राहुल गांधी गम्भीरता के नाम पर आज भी खाली बर्तन हैं। इन्हें निश्चित ही वरिष्ठों के सतत मार्गदर्शन रुपी परिपक्वता की जरूरत है, वरना आगे भी ऐसी संभावना बनी रहेगी।
आश्चर्य इस बात पर भी है कि, उनके जो सलाहकार हैं, क्या वे ऐसी सलाह ही देते हैं, और ये सोचकर (?) अमल भी कर लेते हैं। सोनिया गांधी को भी यह समझना होगा कि, दल में उपाध्यक्ष से अध्यक्ष तक आने-जाने वाले राहुल गांधी के सलाहकारों की सलाह से कांग्रेस संगठन का निरंतर नुकसान हो रहा है।
वर्तमान दौर में यह सवाल लाजिमी है कि, क्या आप ५० साल से ऊपर के किसी दल के प्रमुख से इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि वह कभी भी, किसी को भी कुछ भी कह देगा ? राहुल गांधी ने ऐसा करके अपने लायकपन की गरिमा गिराई है। सोचा ही नहीं, अब इस पर अमल जाना चाहिए कि, यदि राहुल गांधी किसी बड़े अवसर पर भी संयमित भाषा नहीं वापर सकते तो इनको मौन ही रहना चाहिए, ताकि फायदा भले ना हो, पर नुकसान भी नहीं हो। यह चिंतन का विषय है कि, इतने समय में फिर इन्होंने क्या सीखा ? क्या इतना भी नहीं समझ पाए!
अब बात यह भी कि, इससे बाहर तो ठीक, संगठन में ही इनकी खूब किरकिरी हो रही है।
यह बात तो तय है कि, सिर्फ़ बड़े परिवार में ही होने से आप योग्य और प्रतिभाशाली नहीं हो सकते हैं, इसके लिए आपको ख़ुद को तराशना होगा, किसी को अपना गुरु बनाना होगा, मुद्दों पर तार्किक सोच बनानी होगी और हर कार्यक्षेत्र की गम्भीरता भी समझनी होगी, वरना आपको भी राहुल गांधी जैसा होना पड़ सकता है।
इनके हालिया बचकानेपन से कभी-कभी यह भी विचार आता है कि, कहीं इनके सलाहकार जान-बूझकर तो इनकी हँसी नहीं उड़वाते हैं ?
किसी सबसे पुराने राष्ट्रीय दल के अघोषित अध्यक्ष बने व्यक्ति से सबको गम्भीरता की अपेक्षा रहती है, ऐसे में ऐसी हरकतें अन्य नेताओं हीं नहीं, विशेष रूप से जमीनी कार्यकताओं को कमजोर करती हैं। अगर श्री गांधी ऐसा ही करते रहे तो निश्चित ही भविष्य में और भी बहुत मुश्किल आनी है। कोई भी वर्तमान सहयोगी या जुड़ने वाला दल इनको भविष्य में किस तरह झेलेगा, यह कांग्रेस मार्गदर्शक मंडल और संरक्षक सोनिया गांधी को सोचना होगा। अगर इन्होंने समय रहते व्यवहार में अपनी काबिलियत साबित नहीं की, तो केवल इनका दल ही नहीं, बल्कि अन्य के साथ गठबंधन की सारी संभावनाएं रसातल में पहुंच जाएगी। इनसे कहीं-न-कहीं समय-असमय दल की बेहद थू-थू हुई है। अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, तो सबको उम्मीद और उत्साह इनसे भी है। ऐसे में
राहुल गांधी किसी भी तरह की स्तरहीनता करते हैं, तो निश्चित रूप से यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि राहुल को अभी और परिपक्व होने की जरूरत है। भले ही उम्र में वे बालिग हों, पर राजनीतिक उम्र अभी बहुत छोटी लगती है।
आश्चर्य होता है कि, ज़ब पहले ही सामजिक संचार माध्यमों से देशभर में राहुल गांधी ‘पप्पू’ रूप सहित विभिन्न नामों से चर्चित हैं, जिनसे इनकी रोज खिल्ली उड़ती है और संगठन ने इससे परेशान होकर इनकी छवि को बदलने की कोशिश की थी लेकिन, वह बदलती नहीं दिखाई दे रही है, क्योंकि ये तो स्वयं ही खुद का नुकसान करने पर तुले हुए हैं।

सोनिया गांधी को चाहिए कि, वह राहुल गांधी को कम से कम संसद के बाहर सार्वजनिक जीवन में रहने के व्यवहार का तरीका और भाषा अवश्य सिखाएं।