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योग-अध्यात्म-संयम से मिलेगी जीत

ललित गर्ग

दिल्ली
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‘विश्व कैंसर दिवस’ (४ फरवरी) विशेष…

हर साल लाखों लोग ‘कैंसर’ से मरते हैं, जो विश्व स्तर पर मृत्यु का प्रमुख कारण है। कैंसर से लड़ने के लिए सबसे जरूरी है कि, हमें इस बीमारी के बारे में सब- कुछ पता हो। कैंसर के प्रति जागरूकता लाने एवं इसकी जानकारी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूरी दुनिया विश्व कैंसर दिवस मनाती है, ताकि लाखों लोगों को असमय काल का ग्रास बनने से रोका जा सके। पेरिस (फ्रांस) में साल २००० में कैंसर के खिलाफ विश्व शिखर सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के दौरान ‘विश्व कैंसर दिवस’ मनाने की घोषणा की गई थी।

कैंसर एक ऐसा रोग है, जिसके बारे में सुनकर ही लोग डर जाते हैं। कैंसर, वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती जानलेवा स्वास्थ्य समस्याओं एवं बीमारियों में से एक है, जिसके कारण लाखों लोगों की मौत हो जाती है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का अनुमान है कि, २०१७ में कैंसर के कारण ९५.६ लाख लोगों की समय से पहले मौत हो गई। दुनिया में हर छठी मौत कैंसर के कारण होती है। चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रयोग और तकनीक विकास के चलते कैंसर अब लाइलाज बीमारी तो नहीं रही है, पर अब भी आम लोगों के लिए इसका इलाज काफी कठिन है। असाध्य बीमारी के बावजूद इसको परास्त किया जा सकता है, अगर जिजीविषा एवं हौंसला हो तो पस्त किया जा सकता है।
हम जानते हैं कि, हममें से हर एक में बदलाव लाने की क्षमता है, चाहे बड़ा हो या छोटा, और साथ मिलकर हम कैंसर के वैश्विक प्रभाव को कम करने में प्रगति कर सकते हैं। अक्सर वही लोग खतरे में पड़ते हैं, जो खुद को खतरे में महफूज समझते हैं या गंभीरता से नहीं लेते हैं।
मानव शरीर कई कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। इनका समय-समय पर रिप्लेसमेंट होता है। जैसे-जैसे कोशिकाएं मरती जाती हैं उनकी जगह पर नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। इन रिप्लेसमेंट के दौरान जो कोशिका बहुगुणन होता है, तो उसके अंदर कोई एक विकृत कोशिका भी पैदा हो जाती है। यह असामान्य कोशिका ऐसी होती है, जिस पर शरीर के तंत्र का कोई नियंत्रण नहीं होता और यह कोशिका इस तरह बहुगुणन करती है कि, अंततोगत्वा यह ट्यूमर अथवा कैंसर का रूप अख्तियार कर लेती है। कैंसर कई प्रकार के हो सकते हैं, व सभी उम्र के व्यक्तियों में इसका जोखिम देखा जा रहा है। लक्षणों की समय पर पहचान और इलाज प्राप्त करके कैंसर से मृत्यु के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है। आनुवांशिकता, पर्यावरणीय, जीवन-शैली में गड़बड़ी, रसायनों के अधिक संपर्क के कारण कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है। महिलाओं में सर्वाइकल और स्तन कैंसर और पुरुषों में फेफड़े-प्रोस्टेट और कोलन कैंसर का खतरा सबसे अधिक देखा जाता रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान ने कैंसर के प्रकारों, कारणों और उपचारों में काफी विकास किया है। ऐसे तमाम आम और ख़ास हैं, जिन्होंने कैंसर का सही समय पर जांच और इलाज करवाया एवं जीवन का सुख प्राप्त कर रहे हैं। इस दिशा में और भी जागरूकता एवं सतर्कता बढ़ाने की जरूरत है। कैंसर लाइलाज नहीं है, लेकिन इसका इलाज अवस्था १ या २ में पता लग जाने और तुरन्त ऑपरेशन करके निकाल देने से संभव है। इन वर्षों में अनेक प्रभावी दवाई एवं इलाज प्रक्रियाएं भी सामने आई है, जैसे- टार्गेटेड थैरेपी है, इम्यूनो थैरेपी है। उससे काफी आराम मिलता है। उससे अनेक लोगों का खतरा पूरी तरह या कुछ मात्रा में कम हुआ एवं जीवन में कुछ वर्ष बढ़े हैं। एक और बात बताना जरूरी हो जाता है कि, कैंसर एक जीवन-शैली बीमारी भी है। इसलिए जीवन को संतुलित एवं संयममय बनाकर इसको कम किया जा सकता है। आप कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, क्या आदतें हैं, क्या बुरी आदतें है, उस पर भी यह रोग निर्भर करता है। आहार को पौष्टिक रखने के साथ ही शराब-धूम्रपान को छोड़कर कैंसर के खतरे से बचाव किया जा सकता है।
असंतुलित जीवन-शैली ने आज एक नहीं, कई शारीरिक समस्याओं के जोखिम को बढ़ा दिया है। कैंसर भी ऐसा ही एक जोखिम है, जो लंबे समय तक नजरअंदाज किए जाने के कारण अक्सर गंभीर रूप धारण कर लेता है। अगर कुछ सावधानियों को जीवन का हिस्सा बना लें, तो ऐसी समस्याओं को आने से पहले ही रोक सकते हैं। कई बार तो लंबे समय तक यह बीमारी पकड़ में ही नहीं आती। एक बड़ा कारण जागरूकता का अभाव भी है। हालांकि, कैंसर पूर्व के कुछ लक्षण दिखते हैं, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। मुँह में सफेद या लाल धब्बे, शरीर में कहीं गाँठ बन जाना और उसका बढ़ना, लंबे समय तक खांसी, कब्ज की लगातार समस्या, अधिक थकान और वजन में गिरावट जैसे लक्षणों को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
कैंसर को नियंत्रित करने में अध्यात्म की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि अध्यात्म से आत्मविश्वास व मानसिक बल मिलता है। अध्यात्म के सहारे से जीवन यात्रा को सुगम व सरल किया जा सकता है। इसे एक पारम्परिक उपचार प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जो पूरे शरीर, मन और आत्मा में ऊर्जा के संतुलन और प्रवाह को पुनर्स्थापित करती है। जिस प्रकार दवाई हमारे शरीर के अंदर जाकर बीमारी को ठीक करती है, उसी प्रकार आध्यात्मिक इलाज हमारे मन को मजबूत बना कर बीमारी से लड़ने की हिम्मत देता है। सुख-दु:ख, विपदाएं, वेदना, परेशानियाँ, कठिनाइयाँ और बीमारियों का सामना करते-करते व्यक्ति के अंदर से सकारात्मक ऊर्जा खत्म होने लगती है, जिस कारण व्यक्ति थक जाता है और अंदर से टूट जाता है। यह टूटन एवं निराशा कैंसर की सबसे बड़ी बाधा है। अध्यात्म में वो शक्ति है, जो हारे हुए व्यक्ति के जीवन में नई ऊर्जा भर देता है। अध्यात्म के बहुत सारे अंग हैं जैसे-योग, प्राणायाम, मंत्र साधना, ध्यान आदि। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने-आपको भीतर से मजबूत बना सकता है। यही वजह है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में अध्यात्म को अपना लेता है, वो हर पीड़ा, वेदना एवं परिस्थिति का डटकर सामना करता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी हार नहीं सकता।
कैंसर संक्रामक रोग नहीं है। कैंसर के मरीजों से दूरी नहीं बनाएं, बल्कि उनके साथ जुड़कर उनको मानसिक संबल दें, उनमें सकारात्मक सोच विकसित करें। कैंसर की जंग में सकारात्मक सोच रोगी का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है। खिलाड़ी युवराज सिंह हों या कई फ़िल्मी सितारे, सबने अपनी सकारात्मक सोच के जरिए ही कैंसर पर विजय हासिल की है। सकारात्मक सोच वाले शरीर पर ही दवाइयाँ अपना असर दिखती हैं। इसलिए कभी भी व्यक्ति को हताश नहीं होना चाहिए। योग से शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। योग तनाव और चिंता का प्रबंधन करने में भी सहायक है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और मानसिक तनाव को दूर करता है। रोजाना ३० मिनट तक योग करके कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है।