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रंग लाया संघर्ष, ‘भारत’ नाम के लिए सरकार ने बढ़ाए कदम

डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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जी-२० के लिए राष्ट्राध्यक्षों हेतु भारत की राष्ट्रपति की ओर से तैयार निमंत्रण पत्र में अंग्रेजी में भी ‘प्रेज़िडेंट ऑफ़ भारत’ का प्रयोग किया गया है, इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने विदेश दौरे में ‘प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ का प्रयोग किया। उसके बाद खेल जगत की कई हस्तियों ने भी ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ नाम की माँग रख दी। उधर, फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने भी अपनी आनेवाली फिल्म के नाम में ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ कर देश के वातावरण को भारतमय कर दिया। भले ही राजनीतिक दलों और समर्थकों के बीच इसे ले कर विरोधी बयान आ रहे हों, लेकिन पूरे देश ने ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ नाम के प्रयोग का खुलकर स्वागत किया है। भारत नाम को लेकर उमड़ा यह जन- समर्थन निश्चय ही जनभावनाओं का प्रकटीकरण है।
भारत के संविधान से इंडिया नाम हटाने और केवल भारत अपनाने की माँग कोई नई नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा से भारत नाम का पक्षधर रहा है। कई दिन पहले ही संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने भी कहा कि हमें इंडिया के बजाए भारत शब्द का प्रयोग करना चाहिए। ओजस्वी वक्ता व विचारक स्व. राजीव दीक्षित कहा करते थे कि इंडिया हमारा नाम है ही नहीं, हमारा नाम तो भारत है। जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज भी लंबे समय से इंडिया के स्थान पर देश का नाम केवल भारत किए जाने की माँग करते रहे हैं। सद्गुरु जगदीश वासुदेव जी का मानना है कि इस प्रकार किसी देश का नाम बदलना किसी देश के लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाने व उनका आत्मसम्मान व गौरव खत्म करने की एक विधि है, जिसे अंग्रेजों ने भारत में भी अपनाया। भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थक डॉ. वेदप्रताप वैदिक भी केवल भारत नाम के पक्षधर थे। वे कहते थे कि इतने देशों ने अपना नाम बदले हैं तो हमें क्या कठिनाई है। हमें तो केवल इंडिया नाम हटाना है, भारत नाम तो पहले से ही संविधान में है।
इंडिया नाम का अर्थ भी इतना शर्मनाक है कि, कोई देश उसे शब्द को अपना नाम कैसे बना सकता है ? यदि ऑक्सफ़ोर्ड की पुरानी डिक्शनरी खोलें तो पृष्ठ क्र. ७८९ पर लिखा है -‘इंडियन’ जिसका मतलब बताया गया है कि, ‘ओल्ड-फैशन्ड एंड क्रिमिनल पीपल्स’, अर्थात् ‘पिछड़े और घिसे-पिटे विचारों वाले अपराधी लोग।’ इंडिया का एक और अर्थ है “वह व्यक्ति या दंपत्ति, जिसके माता-पिता का विवाह चर्च में नहीं हुआ हो।” अर्थात ‘इंडियन’ शब्द का अर्थ है उस दंपत्ति से पैदा संतानें, जो चर्च में विवाह न होने के कारण नाजायज हैं, मतलब ‘हरामी संतान।’ ब्रिटेन में वहां के नागरिकों को ‘इंडियन’ कहना क़ानूनी अपराध है, क्योंकि यह एक गाली की तरह है। इस तरह इंडिया नाम हमारे स्वाभिमान पर चोट है।
जैन आख्यानों के अनुसार- हमारे देश का भारत नाम जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर ‘भारतवर्ष’ या ‘भारत’ रखा गया था। हालांकि, कुछ लोग भारत नाम को भगवान राम के भाई भरत के नाम पर और कुछ दुष्यंत-शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर रखा गया भी मानते हैं, लेकिन निर्विवाद सत्य यह है कि, हजारों वर्ष से हमारे देश का नाम भारत है। वेदों-पुराणों और रामायण-महाभारत काल से भी पहले से भारत नाम का उल्लेख मिलता है, जबकि इंडिया नाम यूनानियों द्वारा सिंधु नदी को ‘इंडस’ कहने और भारत को इंडिया कहने के कारण उत्पन्न हुआ, जो अंग्रेजों के साथ भारत में प्रचलित हुआ। स्वतंत्रता के पश्चात संविधान में जब इसे लाया गया तो भी सेठ गोविंद दास सहित अनेक संविधान सभा सदस्य इंडिया नाम लाने पर सहमत नहीं थे। इस संबंध में उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने बताया कि, भारत के संविधान में जब इंडिया नाम का प्रस्ताव पारित हुआ तब उसके समर्थन में २९९ में से केवल ५६ लोग ही उपस्थित थे और उनमें से ३५ लोगों ने ही समर्थन व्यक्त किया था। निश्चय ही यह जनभावनाओं के और राष्ट्रीय गौरव के अनुरूप नहीं था।
यह बताना भी उचित होगा कि, भले ही आज कुछ राजनीतिक नाम हटाने के खिलाफ हों, लेकिन पूर्व में भी अनेक दलों द्वारा इस तरह की माँग रखी जाती रही है। समाजवादी पार्टी ने साल २००४ में चुनाव के दौरान अपने घोषणा-पत्र में भी इस बात का जिक्र किया था कि वह देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत करेगी। सरकार बनने के बाद ३ अगस्त २००४ को मुलायम सिंह ने इसे विधानसभा में पेश किया। सदन में प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास करने के बाद इसे केंद्र सरकार के पास भेजने की बात भी कही गई थी। २०१२ में कांग्रेस सांसद रहे शांताराम नाइक ने राज्यसभा में एक बिल पेश किया था, जिसमें उन्होंने मांग की थी कि संविधान की प्रस्तावना में अनुच्छेद १ में और संविधान में जहां-जहां इंडिया शब्द का उपयोग हुआ है, उसे बदल कर भारत कर दिया जाए। वर्ष २०१० और २०१२ में शांताराम नाइक ने २ निजी बिल पेश किए थे। उन्होंने कहा था कि इंडिया शब्द से एक सामंतशाही शासन का बोध होता है, जबकि भारत से ऐसा नहीं है। वर्ष २०१४ में गोरखपुर से सांसद रहते हुए योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में एक बिल पेश किया था। उन्होंने ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ नाम के बजाए ‘हिंदुस्तान’ किए जाने की मांग की थी।
भारत के हजारों वर्ष पुराने नाम के पहले हमारी दासता के प्रतीक और इंडिया जैसे शब्द को देश का नाम देना, जिसका शब्दकोषीय अर्थ गाली की तरह है, इसे देश के जनमानस ने कभी स्वीकार नहीं किया। इसे लेकर अनेक संगठनों द्वारा माँग की जाती रही है। इसे लेकर न केवल रैलियाँ और यात्राएँ निकाली गई, बल्कि अनेक संगोष्ठियाँ और आंदोलन आदि होते रहे। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुँचा। सर्वोच्च न्यायालय तो संविधान में जो लिखा है, उससे बंधा है और परिवर्तन का कार्य तो संसद ही कर सकती है। इस प्रकार संविधान से इंडिया नाम हटाने की और केवल भारत नाम अपनाने की माँग पुरानी है।
इस संबंध में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ तथा ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ द्वारा २०२२ में मुंबई में कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें संविधान के अनुच्छेद १ में संशोधन करते हुए इंडिया नाम हटाने और केवल भारत अपनाने के साथ-साथ जनभाषा में न्याय की मांग की गई थी। इसके पश्चात ९ अक्टूबर को सम्मेलन और फाउंडेशन द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना आयोजित करते हुए जनभाषा में न्याय, शिक्षा और रोजगार के साथ-साथ इंडिया नाम को भारत के संविधान से हटाने की मांग की गई थी। दोनों संस्थाओं द्वारा भारत की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री आदि को ज्ञापन भी दिया गया था।इसके बाद पटना में सम्मेलन द्वारा आयोजित सम्मेलन में भी इन्हीं माँगों को उठाया गया।
जो लोग यह सोच रहे हैं कि, विपक्ष के आईएनडीआईए गठबंधन बनने के कारण सरकार ने यह निर्णय लिया है, उन्हें बताना चाहूँगा कि, सरकार को हमारे ज्ञापन के परिणाम स्वरूप मामला आगे बढ़ाया गया था। इस संबंध में गृह मंत्रालय द्वारा कानून मंत्रालय को आवश्यक कार्रवाई के लिए लिखा (२१ अप्रैल २०२३ को इंडिया नाम को संविधान से हटाने के संबंध में गृह मंत्रालय द्वारा) गया था। इस पत्र की प्रति सम्मेलन तथा फाउंडेशन’ के पदाधिकारियों को भी भेजी गई थी। इस प्रकार गृह मंत्रालय द्वारा पहले से ही भारत नाम रखने का मामला विचाराधीन था।
अंग्रेजी में इंडिया लिखे जाने और विदेशों से समग्र पत्राचार व संपर्क में अंग्रेजी का प्रयोग किए जाने के कारण अभी तक तो विश्व ‘भारत’ नाम से परिचित तक नहीं था, लेकिन जी-२० सम्मेलन के समय निमंत्रण-पत्र में भारत लिखकर सरकार ने विश्व के नेताओं, राजनयिकों और विदेशी मीडिया को भी भारत नाम से परिचित करवाया है। सम्मेलन के समय सरकार की यह पहल और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
एक प्रश्न यह भी उठता है कि, क्या देशों के नाम बदले जाते हैं या बदले जा सकते हैं ?, तो कुछ उदाहरण देख लीजिए- १९३५ में पर्शिया का नाम ईरान हो गया, १९३७ में आयरिश फ्री स्टेट से आयरलैंड हो गया, १९३९ में सियाम से थाइलैंड हो गया, १९७२ में सिलोन से श्रीलंका हो गया, २०२० में हॉलैंड से नीदरलैंड्स नाम हुआ, २१ में अफगानिस्तान से इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान नाम हो गया, २२ में तुर्की का नाम बदल कर तुर्किये कर दिया गया है। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह कि, हमारे देश में तो नाम बदलने की बात है ही नहीं, भारत नाम पहले से ही संविधान में है, केवल इंडिया नाम को भारत के संविधान से हटाना है।

भारत के राष्ट्रपति के लिए अंग्रेजी में ‘इंडिया’ के बजाय ‘भारत’ शब्द का प्रयोग किए जाने पर दोनों संस्थाओं सहित इस आंदोलन से जुड़े सभी लोगों ने इसका स्वागत करते हुए प्रसन्नता व्यक्त की है। जिस प्रकार देश के लोगों ने इंडिया की जगह भारत नाम का जोरदार स्वागत किया है। यह राजनीतिक दलों के लिए भी एक संदेश है। राजनीतिक दलों और सभी जनप्रतिनिधियों को देश के गौरव, स्वाभिमान और जनभावनाओं का सम्मान करते हुए भारत करने के लिए आगे आना चाहिए।