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रक्षा.

हेमा श्रीवास्तव ‘हेमाश्री’
प्रयाग(उत्तरप्रदेश)

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बंधन नहीं बाधूँगी भैया,
ना रक्षा का वचन लूँगी।
प्राण से प्यारे मेरे विरना,
स्वंय रक्षा का व्रत लूँगी॥

बलिहारी जाऊँ तुझपे मेरे भईया,
पर तेरी कलाई आज नहीं थामूँगी।
चंदा चमके हरदम ही माथ पे भईया,
पर चंदन टीका आज नहीं साजूँगी॥

मैं सक्षम बन जाऊँ खुद भैया,
बस दुआएँ आज यही मागूँगी।
राखी की आज नेग न दो भैया,
मैं स्वंय से ही अब कमा लूँगी॥

वतन के तुम ही हो रक्षक भैया,
मैं भी सीमा अब पर लड़ लूँगी।
मिला के कंधे से कंधा अब भैया,
मैं भी दुश्मन को पछाड़ दूँगी॥

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