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लक्ष्मी की वापसी

डॉ.आभा माथुर
उन्नाव(उत्तर प्रदेश)
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बात तब की है,जब मैं बनारस में डी.आई.ओ. एस. थी। वैसे तो नगर के सभी इन्टर कालेज मेरे अधीन थे,पर एक इन्टर कालेज की मैं पदेन प्रबन्ध संचालक थी। पदेन का अर्थ है कि उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार जो भी बनारस का डी.आई.ओ.एस. होता,वही उस विद्यालय का प्रबन्ध संचालक(एक तरह से प्रबन्धक ) होता। मैं जिस विद्यालय की पदेन प्र.सं. थी,वह विश्वनाथ गली में था। वहाँ के प्रधानाचार्य और शिक्षक आदि मेरे कार्यालय में आकर वहाँ हो रही समस्याओं के विषय में बताया करते थे। अत: मैंने एक दिन विद्यालय का अकस्मात निरीक्षण करने की बात सोची। जुलाई या अगस्त का महीना था। बिना दिन का ध्यान दिए मैंने जो दिन निरीक्षण के लिये चुना,वह सोमवार था। यह तो मैंने सोचा ही नहीं था कि वह सावन का महीना था। कुल मिलाकर मैं सावन के सोमवार को विश्वनाथ गली पहुँच गई।
बनारस जैसा धार्मिक नगर,सावन का सोमवार और विश्वनाथ गली,आप सोच सकते हैं कि कैसी भयंकर भीड़ होगी। भीड़ देखकर मुझे ग़लत दिन के चुनाव की ग़लती का अहसास हुआ,पर कदम उठाने के बाद पीछे हटाना मेरे स्वभाव में नहीं है,अतः सोचा कि अब तो शाला का निरीक्षण करके ही जाऊँगी। अभी विश्वनाथ गली के मोड़ पर ही थी (वहीं पर भीड़ का यह हाल था ) कि एक आवाज़ आई-“बहन जी,आपका सामान गिर गया है।” मैंने नीचे देखा तो वह एक कपड़े का बैग जैसा था,जो पेचकस,रिन्च,प्लास आदि औज़ार रखने के लिए बना होता है। उसमें १००-१०० के नोट ठूँस-ठूँस कर भरे थे। १९९५ में १०० का नोट ही सबसे बड़ा होता था,और उसकी क्रय शक्ति भी आज की तुलना में दस गुना से अधिक थी ।
क्योंकि,वह रुपये मेरे नहीं थे अत: मुझे रखने तो थे नहीं,पर मैंने सोच लिया-रुपयों का बैग किसी पुलिस वाले को नहीं सौंपूँगी। जिस बेचारे का गिरा होगा,वह कितना परेशान होगा! निश्चित ही वह बैग को ढूँढता हुआ इधर आएगा। यह सोचकर मैंने बैग को तो पर्स में सुरक्षित रख लिया और वहीं खड़ी रही। वही हुआ,थोड़ी देर में एक आदमी निकला,जो ज़मीन पर इधर-उधर देखता कुछ ढूँढता-सा लग रहा था।
मैंने उससे पूछा भी-“क्या बात है ?”,पर वह बिना कोई उत्तर दिये आगे बढ़ गया। पाँच मिनट बाद वह उसी रास्ते से वापस लौटा,उसी प्रकार ज़मीन पर कुछ ढूँढते हुए। मैंने पुन: पूछा-“क्या खो गया ?”,इस बार उसने बताया कि उसके मित्र का रुपयों से भरा बैग कहीं गिर गया। मैंने बैग दिखाकर पूछा-“यह तो नहीं है ?” उस आदमी ने उत्तर देने के स्थान पर झुककर मेरे पैर छू लिए और तेज़ चाल से चला गया। बैग में कितने रुपये थे,यह पूछना व्यर्थ था,क्योंकि मैंने रुपए गिने ही नहीं थे। मुझे विश्वास है कि मैंने सही व्यक्ति को ही बैग लौटाया था। चलो अच्छा हुआ कि उस व्यक्ति को अपने रुपए मिल गये और मुझे सन्तोष मिला।
उसके बाद उक्त विद्यालय भी गई,पर वहाँ कोई शोकसभा होने के कारण विद्यालय बन्द मिला।

परिचय–डॉ.आभा माथुर की जन्म तारीख १५ अगस्त १९४७ तथा जन्म स्थान बिजनौर (उत्तर प्रदेश)हैl आपका निवास उन्नाव स्थित गाँधी नगर में हैl उन्नाव  निवासी डॉ.माथुर की लेखन विधा-कविता,बाल कविताएं,लेख,बाल कहानियाँ, संस्मरण, लघुकथाएं है। सामाजिक रुप से कई संगठनों से जुड़कर आप सक्रिय हैं। आपकी पूर्ण शिक्षा फिलासाफी ऑफ डॉक्टरेट है। कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश है। सरकारी नौकरी से आप प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। साझा संग्रह में डॉ.माथुर की कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही अनेक रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। सामाजिक मीडिया समूहों की स्पर्धाओं में आप सम्मानित हो चुकी हैं। इनकी विशेष उपलब्धि आँग्ल भाषा में भी लेखन करना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य आत्म सन्तुष्टि एवं सामाजिक विसंगतियों को सामने लाना है, जिससे उनका निराकरण हो सके। आपमें दिए गए विषय पर एक घन्टे के अन्दर कविता लिखने की क्षमता है। अंग्रेज़ी भाषा में भी लिखती हैं।

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