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लघुकथा औऱ लघु कहानी में जमीन-आसमान का अंतर

पटना (बिहार)।

लघुकथा सृजन के पहले लघुकथाओं का शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करें। लघु कथा समीक्षा की पुस्तकें पढ़ें और अच्छी-अच्छी लघुकथाओं का अध्ययन करें, तब लघुकथा सृजन का अभ्यास करें। अध्ययन के बिना श्रेष्ठ लघुकथा का सृजन असंभव है। अध्ययन नहीं करने का ही परिणाम है कि आज भी ढेर सारे लेखक यह नहीं समझते कि लघुकथा औऱ लघु कहानी में जमीन आसमान का अंतर है।
मुख्य अतिथि डॉ. मंजू सक्सेना (लखनऊ) ने लघुकथा के विषय वस्तु पर विशेष ध्यान देने का आग्रह और नए लेखकों को सुझाव देते हुए यह बात कही। यह मौका रहा अवसर साहित्य पाठशाला के २८वें अंक में
आभासी आयोजन का। देश में पहली बार इस तरह की साहित्यिक पाठशाला का ऑनलाइन आयोजन करने वाले संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन के क्रम में कहा कि साहित्य पाठशाला दिग्भ्रमित लघुकथाकारों को सकारात्मक दिशा देने में सक्षम है। बारीकियों को समझने के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन लघुकथा की पाठशाला की सख्त जरूरत है।

ऑनलाइन प्रसारित इस पाठशाला में भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने वरिष्ठ लघुकथाकार और कवि डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौ) से आभासी भेंटवार्ता ली। डॉ. शुक्ल ने कहा कि आज लघुकथाओं की भीड़ लग गई है, जिस भीड़ में अच्छे लघुकथाकार और अच्छी लघुकथाएं दब सी गई है। अधिकांश को यह भी पता नहीं कि लघुकथा का आकार, प्रकार या उसका कथानक क्या होना चाहिए, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इनके अतिरिक्त ऋचा वर्मा, सपना चंद्रा, नमिता सिंह, योगराज प्रभाकर और अनिरुद्ध झा आदि ने भी चर्चा में भाग लिया।

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