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लेखन में लोकहित की भावना अवश्य होनी चाहिए

स्मरण…

इंदौर (मप्र)।

लेखन में लोकहित की भावना अवश्य रहनी चाहिए और वही साहित्य चिरंतन होता है। इस कसौटी पर कुबेरनाथ जी पूर्णत खरे साबित हुए।
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा प्रारंभ की गई कालजयी साहित्यकार स्मरण की १०वीं श्रृंखला में इस बार ललित निबंधकार कुबेरनाथ राय के साहित्यिक कृतित्व पर चर्चा में यह विचार विभिन्न विद्वानों ने व्यक्त किए। मुख्य अतिथि प्राचार्य नंदकिशोर सोनी (केन्द्रीय विद्यालय-वर्धमान, पश्चिम बंगाल) ने कुबेरनाथ जी के जीवन चरित्र के साथ उनकी लेखन शैली पर भी विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर कुबेरनाथ जी कर रचना ‘मधुकरी’ के साथ उनके चित्र का भी अनावरण किया गया। वीरेन्द्र पुरी गोस्वामी ने कुबेरनाथ जी के जीवन चरित्र पर रचना पढ़ी। राकेश शर्मा ने उनके ललित निबंधों पर विचार व्यक्त किए और बताया कि कुबेरनाथ जी के साहित्य पर वर्तमान के ललित निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय विशेष रूप से कार्य कर रहे हैं। इस कालजयी रचनाकार पर मुकेश तिवारी और डॉ. आरती दुबे ने भी विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम में हरेराम वाजपेयी, प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, सपना सीपी साहू ‘स्वप्निल’, हरीश शर्मा और आशा जाकड़ आदि साहित्यकार उपस्थित रहे। संचालन एवं अतिथि परिचय डॉ. पद्मा सिंह ने दिया।आभार समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने व्यक्त किया।

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