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वैवाहिक गठबंधन…

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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मेरे स्कूल-कॉलेज में साथ पढ़ने वाले लगभग सभी मित्रों की शादी हो चुकी थी,केवल मोहन बाकी रह गया था। जब भी दोस्तों की महफ़िल जमती ,सभी मिलकर उसकी हँसी उड़ाते रहते थे,पर वह कभी बुरा नहीं मानता था। कब शादी कर रहे हो,पूछने पर कहता कि भाई, देख तो रहा हूँ पर शादी के लिए लड़की नहीं मिल रही है। दोस्त बोलते थे कहीं ऐसा तो नहीं लड़की देखते-देखते इतने वर्ष बीत जाए कि लड़की की माँ तुझे देखकर बेहोश हो जाएगी यह कहकर कि हाय राम!! यह आदमी तो वर्षों पहले शादी के लिए मुझे देखने आया था।
मोहन ने हँस कर टाल दिया,फिर गंभीरता के साथ बोला-जो भी लड़की देखता हूँ मेरे माता-पिता तथा मुझे पसंद तो आ जाती है। आजकल की लड़कियां शादी करने को राजी होने के पहले इतने सारे नाज़-नखरे और शर्तें रख देती है,जो हमें पसंद नहीं आता। खास कर मैं उनकी बातों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकता हूँ। पहली मुकालात में ही मुझसे कह देते हैं कि मुझे अपने परिवार से अलग होकर उसके साथ अलग से घर बसाना पड़ेगा। भला मैं अपने माता-पिता और छोटे भाई-बहन को छोड़कर अलग घर कैसे बसा सकता हूँ ? मैं अकेला ही अपना व्यवसाय चलाता हूँ। साथ देने कभी-कभी पिताजी चले आते हैं,आजकल नौकरों के भरोसे छोड़ने से कोई भी काम सही तरीके से नहीं हो पाता है।
मैंने मोहन की शादी की बात पत्नी को बताई। मुझे क्या पता था कि उसकी जान-पहचान में एक खूबसूरत,सीधी-सादी और विवाह योग्य उपयुक्त लड़की है और वह भी संयुक्त परिवार से है। उसने कहा कि,मेरी सहेली सीमा की बहन मीना है,चलिए मैं सीमा से बात करती हूँ। उसने तुरंत अपनी सहेली सीमा को फोन कर उसकी बहन मीना की शादी की बात मोहन से करने को कहा। सीमा तुरंत राज़ी हो गई। पत्नी ने सीमा से बात करवाने के लिए मुझे फोन पकड़ा दिया। मैंने मीना को मोहन के विषय में सारी जानकारी दे दी,और उसकी बहन के विषय में भी जानकारी ली। सीमा ने कहा कि मैं अपने पति से इस विषय में बात करके आपको बताऊंगी। इस बीच आप भी मोहन जी से मेरी बहन से शादी करने की बात कर मिलने के लिए कोई एक तारीख तय कर लीजिएगा,छुट्टी का दिन या रविवार ठीक रहेगा।
शाम को मोहन की दुकान में गया,वहां पर मोहन ओर उसके बाबू जी बैठे थे। शादी के लिए लड़की की जानकारी जितनी मुझे बताई गई थी,उन्हें बोल दी। मोहन के बाबू जी बहुत खुश हो गए,जब उन्होंने सुना कि लड़की संस्कारी है और संयुक्त परिवार से है।
रात तक पत्नी की सहेली सीमा ने भी हाँ कर दी,और लड़की और लड़के को मिलकर बात-चीत करवाने के लिए मुझे अपने ही घर पर रविवार की तारीख रखने को बोल दिया। पत्नी खुश हो रही थी कि उसके घर से कोई अच्छा कार्य होने जा रहा है। खैर,मैंने भी मोहन को फोन पर रविवार को शाम मेरे घर पर कन्या से मिलने के लिए आने को बोल दिया।
रविवार शाम को लड़का तथा उसके घर के ४ लोग और लड़की पक्ष के ३ लोग मेरे घर पर पहुंचे। पहले हम आपस में इधर-उधर की बातें करते रहे। मोहन लड़की को देखने के लिए उतावला हो रहा था। मुझे बार-बार ईशारा कर रहा था कि लड़की को भी बुला लिया जाए। मैं उसकी उपेक्षा करता रहा, अंततः मोहन ने मेरी पत्नी को धीमी आवाज़ में लड़की से मिलाने को कहा। मेरी पत्नी यह बात सुनकर बहुत जोर से हँस दी,तो मोहन झेंप गया…। मेरी पत्नी ने जोर से आवाज़ लगाई,मीना अगर तैयार हो गई हो तो,जरा चाय और नाश्ता लेकर आ जाओ। मोहन भी उत्सुकतावस उस ओर देखने लगा था। जब कुछ देर बाद भी मीना कमरे में नहीं आई, तब मेरी पत्नी ने घर के भीतर जाकर मीना से पूछा कि क्या बात है ? अंदर क्यों नहीं आ रही हो..! तब मीना बोली,दीदी यह वह लड़का है जब भी मै बाज़ार जाती हूँ तब इनकी दुकान से सारा सामान लेती हूँ। लड़का सामान खरीदने में बहुत सहायता करता है। मुझे पहचान जाएगा तो क्या सोचेगा,यही बात सोच-सोचकर मुझे शर्म आ रही है।
खैर,मेरी पत्नी मीना को अपने साथ कमरे में ले आई। दोनों के हाथ में नाश्ते की प्लेटें थी जिसे एक बड़ी-सी ट्रे में बहुत खूबसूरती के साथ सजाकर लाया गया था।
मोहन,वर्तमान परिस्थिति को भूलकर मीना को एकटक देख रहा था,जैसे जिंदगी में ऐसी ख़ूबसूरत कन्या देखी ही नहीं…। मीना चमकदार साड़ी और हल्के मेक-अप में भव्य लग रही थी। ऐसा रहा था कि स्वर्ग से परी धरा पर उतर कर आ गई है।
जैसे ही मीना ने मोहन को नाश्ते की प्लेट दी, तब मोहन घबरा गया…। उसके हाथ से प्लेट गिरकर टूट गई और सारा नाश्ता फ़र्श पर बिखर गया। मोहन शर्मशार होकर मीना से माफ़ी मांगने लगा,पर हम सब उसकी हालत देखकर हँस दिए। मेरी पत्नी बोली,शुरुआत अच्छी है,मोहन भैय्या शादी के पहले ही अपनी होने वाली पत्नी से माफ़ी मांग ली। अब आगे-आगे देखिए,क्या गुल खिलता है। मोहन और मीना दोनों शर्म से लाल हो गए थे। माहौल को हल्का करने के लिए मैं बोला, एक काम करो,तुम दोनों नाश्ता बाद में कर लेना,सामने की बालकनी में कुर्सी रखी हुई है और सामने बगीचा भी है,दोनों वहीं बैठकर आपस में बात-चीत कर लो। पत्नी तुरंत दोनों को बालकनी में पहुंचाकर वापस आ गई। थोड़ी देर बाद वे दोनों वापस कमरे में आ गए। उनके चेहरे से लग रहा था कि बात बन गई है। बाद में बताने की बात कहकर दोनों पक्ष ने विदा ली।
कुछ दिनों में ही शादी की बात पक्की हो गई और बहुत धूम-धाम से शादी भी हो गई। शादी के बाद कुछ दिन तक तो दोनों खुश थे, उसके बाद मोहन मुझसे मीना की शिकायत करता और मीना मेरी पत्नी से मोहन की शिकायत करती। दोनों का कहना एक जैसा ही था वह आप कैसे लड़के-लड़की के साथ मेरी शादी करा दिए,इससे तो मैं कुंवारा-कुंवारी ही सही था-थी। शिकायतें सुन-सुन कर हम दोनों के कान पक चुके थे।
एक दिन हम दोनों ने आपस में सलाह करके छुट्टी वाले दिन मोहन और मीना को रात को खाने पर बुलाया। हम लोग बैठकर खाने के पहले गप-शप कर रहे थे,इतने में मीना ने मोहन की शिकायत शुरू कर दी और मोहन ने भी मीना पर उल्टा इल्जाम लगाना शुरू कर दिया। बात कुछ बड़ी नहीं थी। हर घर में नई शादी के बाद की शुरुआती समस्या थी जो आपसी सामंजस्य से सुलझाई जा सकती थी। मेरी और पत्नी की सहनशीलता जवाब दे गई। तब हमने उन दोनों को समझाया, देखो भाई,एक बात हम आप दोनों को स्पष्ट कर देना चाहते हैं,हमने केवल आप दोनों को मिलवाया है। हमने आप दोनों पर शादी करने का कोई दबाव या जबरदस्ती नहीं की। यह तो आप दोनों और आपके परिवार ने आपस में मिल-बैठकर तय किया। भाई मोहन आप बोलो कि,आप अपनी दुकान से जो सामान बेचते हो,उसके बिकने के बाद उसकी कोई गारंटी लेते हो क्या ? यह छोटी-छोटी समस्या है जो आप लोग आपसी समझ और सामंजस्य से मिटा सकते हैं। इसके लिए एक-दूसरे के ऊपर भरोसे की जरूरत होती है,एक-दूसरे की कठिनाई को समझना पड़ता है। केवल एक-दूसरे पर आरोप लगाने से बात बनने की जगह उलझ जाती है। यहाँ पर बात कौन सही है कि नहीं की नहीं है,बल्कि क्या बात सही है,की है। भावावेश में लिया गया निर्णय कभी सही नहीं होता है,अत: आप दोनों से हमने जो बात की,आप समझ गए होंगे। दोनों ने हाँ में सिर हिलाया,फिर रात का स्वादिष्ट भोजन कर मेरी पत्नी की रसोई की तारीफ करते हुए दोनों अपने घर चले गए। उसके बाद उन लोगों ने कभी कोई शिकायत नहीं की। हम लोगों ने भी उसके बाद फिर कभी कोई शादी का गठबंधन नहीं कराया…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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