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व्यक्तित्व-कृतित्व को अपनाने की नितान्त आवश्यकता

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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१२ जनवरी १८६३ का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के नाम से विशेष रूप से अंकित है। हालांकि, विवेकानंद जी का बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था, पर भारतीय वैदांतिक ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आकर उन्हें स्वामी विवेकानंद का नाम प्राप्त हुआ। स्वामी जी का शिकागो सम्मेलन में भाग लेना भारतीय-धार्मिक इतिहास में अहम स्थान रखता है। अपने भाषण की पहली पंक्ति में ही उन्होंने जिस तरह से सभी का दिल जीत लिया था, वह अविस्मरणीय है। उसके बाद विश्वभर में भारतीय वेदांत दर्शन स्वामी जी के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित हो गया।
विवेकानंद जी का व्यक्तित्व और कृतित्व महज सालों का जीवन संसार में जीने पर भी कुछ ऐसा है कि, वह भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनकी शिक्षा के मूल सूत्र-में चरित्र की पवित्रता है। विवेकानंद जी का मानना था कि, व्यक्ति के चरित्र की पवित्रता में ही भगवान साफ साफ नजर आता है। अर्थात जहां चरित्र की प्रधानता है, भगवान वहीं निवास करते हैं।उन्होंने यह बात कही ही नहीं, बल्कि अपनी जिन्दगी में आजमाई भी। अमेरिकन लड़की का विवाह का आत्म निवेदन और स्वामी जी का प्रतिउत्तर अपने-आपमें वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए किसी नसीहत से कम नहीं है। बड़ी मुश्किल से ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण समाज में होता है। जब भारतीय समाज में ऐसा विशाल मानस व्यक्तित्व पैदा होता है, तो भारत उसे संत की उपाधि से नवाजता है। विवेकानंद जी भारतीय समाज के ऐसे संत थे, जो छोटी-सी आयु में ही युवा पीढ़ी को बहुत बड़ा संदेश दे गए। आज समाज में युवा वर्ग नाना प्रकार के नशों में लिप्त और ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के फूहड़पन में जी रहा है। इतना ही नहीं, उसे अपने जीवन की शान भी समझते हैं। ऐसे युवाओं को स्वामी जी के जीवन चरित्र से सीख लेनी चाहिए कि, कैसे चरित्रवान बने रहना चाहिए। चरित्र वह ताकत है, जो चरित्रहीनों को भी चरित्र के पथ पर चलने के लिए मजबूर कर देता है। एक चरित्रवान व्यक्ति ही एक चरित्रवान परिवार और समाज का निर्माण कर सकता है तथा सचरित्र समाज ही मानव जीवन के सुख का मूल कारण है, पर आज ये बातें करना कोरी बेईमानी है।
ऐसे ही स्वामी जी हमेशा अंधविश्वासों और रूढ़ियों के कट्टर विरोधी रहे। उन्होंने मंदिरों में मूर्तियों को पूजने से बेहतर किसी गरीब-बेसहारा और मजलूम की सेवा करना अधिक अच्छा समझा। आज युवा पीढ़ी को स्वामी जी के जीवन की इस राष्ट्र-भक्ति वाली भावना से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। आज युवा पीढ़ी को भारतीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय समाज में भी स्वामी जी के पद चिन्हों पर चलने की जरूरत है। सेवा, सत्संग और साधना मनुष्य जीवन के प्राण हैं। जिस दिन ये समाप्त हो जाएंगे, उस दिन समाज मृतप्राय: हो जाएगा।इस महान सन्त के व्यक्तित्व और कृतित्व को आज युवा पीढ़ी के समक्ष आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने की नितान्त आवश्यकता है।