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शिक्षक मार्गदर्शक इंद्रधनुषी जीवन पथ के

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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शिक्षक:मेरी ज़िंदगी के रंग’ स्पर्धा विशेष…..

जब भी ‘शिक्षक’ की बात होती है,तो अपने छात्र दिवस की सुनहरी यादें मन मस्तिष्क में उभर आती हैं। विद्यालय के शिक्षक हों,या कला क्षेत्र में,सबकी अपनी गरिमा होती है।
सर्वप्रथम शिक्षक तो हमारे माता-पिता ही होते हैं, जो हमारे लालन-पालन के साथ हमें आ आ माँ ,बाबा,पिता,बाबूजी,नानी-नाना,दादी-दादा अनेक शब्दों से परिचय कराते हैं। जीवन को सार्थक दिशा देने और व्यक्तित्व निखारने तक में सहयोग करते हैं। और स्लेट या कोरे पन्नों पर पेंसिल से रेखाएं खींचना भी। मैं भाग्यवान हूँ कि मेरे अभियंता पिता एवं मेरी शिक्षित माता जी ने मेरे कोरे कागज से जीवन में अति सुंदर प्रथम रंगों से मेरा परिचय कराया और मुझे निखारने के पग-पग पर मेरे साथ रहे।
विद्यालय में भर्ती कब हुई याद नहीं,पर जाना बहुत आनंददायक रहता था। जब दूसरी कक्षा में गाना सीखना चाहा,तो पिता जी हारमोनियम खरीद कर लाए। गुरु जी ने माँ सरस्वती की तस्वीर रख कर पहले मुझसे उनकी विधिवत पूजा करवाई,
तब सा रे गा मा की शिक्षा शुरू हुई। और मैं समझती हूँ कि,जिंदगी में शिक्षक द्वारा मेरे बालपन के कोमल विचारों और व्यक्तित्व के खूबसूरत रंगों के विस्तार की शुरुआत यहीं से हुई थी।
विद्यालय में छात्राओं और छात्रों की पढाई पर शिक्षक की अहम भूमिका होती है,और मेरे शिक्षकों ने विद्या प्राप्ति के समय को अनमोल बना दिया। छठी से दसवीं कक्षा तक छात्राओं के प्रिय शिक्षक पीएचडी किए हुए डॉ. पांडे गुरु जी बडे़ विनोदशील प्रकृति के थे। मेरे कॉन्वेंट विद्यालय में वो धोती-कुर्ते में ही गुरु रूप में आते थे। प्राचार्या जी उनका बहुत सम्मान करती थी। वे हिंदी और संस्कृत को बडे़ ही रोचक ढंग से पढा़ते। कभी-कभी हम छात्राओं की फरमाईश पर कहानियाँ सुनाते। इन सुंदर यादों से दिल मुस्कुरा उठता है। अंग्रेजी विद्यालय की शिक्षा और गुरु जी द्वारा हिंदी का रंग मुझ पर कुछ ऐसे ही चढ़ने लगा था।
बालपन से मेरा स्वप्न चिकित्सक बनने का ही रहा (जिसका श्रेय मेरे पिता माता को देना चाहूँगीं),तो मैं भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान,गणित,और जीव विज्ञान की पढ़ाई पर भी विशेष ध्यान देती। उस समय गुरु जी के प्रोत्साहन से मेरी कविता विद्यालय की पत्रिका में भी छपती थी। ऐसे अनोखे थे मेरे सभी शिक्षक,एक से बढ़कर एक।
मेरे जीवन में ऐसे शिक्षकों के मार्गदर्शन के कारण मुझे अपनी पढ़ाई के लिए अलग से बाहरी शिक्षकों की कभी भी आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यह भी नहीं कि केवल पढ़ाई ही होती थी-एनसीसी, खेलकूद,सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना चलता रहा। मैं मंच पर बोलना भी सीखती,तो कक्षा में जीवन में अनुशासन का महत्व भी। विद्यार्थी जीवन बहुमुल्य होता है,जिसमें घर,विद्यालय,शिक्षक, संगी-साथी की भूमिका रहती है। मेरे व्यक्तित्व को निखारने और जीवन को सुंदर रंगों से सजाने वाले शिक्षकों ने मुझे सदा जमीन पर पैर जमा क्षितिज का विस्तार दिखाया,और मेरे पंखों में शक्ति का संचार किया। मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। इस सबके साथ कथक नृत्य में भी अपनी शिक्षा प्रसिद्ध नृत्य शिक्षक से ली,और मंचों पर प्रदर्शित भी किया।
फिर संत जेवियर कॉलेज(राँची) में और ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में फॉदर कामिल बुल्के का आशीष मिला,जो संस्कृत-हिंदी के प्रखंड विद्वान थे। उन्होंने रामायण का इंग्लिश में अनुवाद किया था और हिंदी शब्दकोष भी लिखा था। हिंदी के लिए १९७४ उन्हें में पद्मभूषण से नवाजा गया। वे और फॉदर वैन डे वेल्डे मुझे कविता लिखने के लिए सदा प्राेत्साहित करते रहे। वे बराबर कहते-तुममें चिकित्सक बनने का जुनून और काबलियत है,पर साहित्य की भी पकड़ है। विज्ञान और साहित्य का तालमेल बैठाना सरल ना होगा। चिकित्सा की पढ़ाई के समय भी मैं उन्हें मिलती रहती थी।
चिकित्सा प्रतियोगिता देना,फिर इसकी वर्षों की लंबी पढ़ाई में विभिन्न गुरुओं द्वारा प्रदत चिकित्सा विज्ञान के पथ पर बढ़ती हुई अभी भी स्वयं को विद्यार्थी ही समझती हूँ। देवी सरस्वती माँ की मुझ पर विशेष कृपा से एमबीबी एस, फिर पी.जी. कर स्त्री रोग विशेषज्ञ बन समाज की सेवा करने के लिए माता-पिता,गुरु-शिक्षक के आशीष से अग्रसर हुई, और समाज में विशेष स्थान पाया। जीवन की यात्रा में ऐसे अनेक गुरु आए,जिन्होंने मार्गदर्शन किया। मेरे गुरु,मेरे शिक्षक आप सदा हृदय में रहते हैं-
‘शिक्षा से ज्ञान मिले,
ज्ञानी से शिक्षा मिले
शिक्षक करते शिक्षित,
शिक्षा से है चक्षु खुले।

ज्ञान का उपयोग चले,
कर्मज्ञान बोध खिले
प्रगति की बने राह,
शिक्षा से संयोग मिले।

जीवन में कई रंग मिले,
आवश्यक है ज्ञान फले
संसार पथ पर निरंतर,
विद्या विचार चक्षु खोले॥’

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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