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संग चंदा-तारे रहिए

बबीता प्रजापति 
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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छत पर आज,
तारों से मुलाकात हुई
टिमटिमाते-जगमगाते,
अम्बर पर जैसे बरसात हुई।

कल्पनाओं के पंख खोले,
जैसे कोई खड़ा हो छत पर
बता रहा हो अपनी माँ को,
एक-एक तारा गिनकर।

घुप्प अंधेरी रातों में,
पवन भी डोले हौले-हौले
माँ की गोदी में मोहन,
मुस्काए, पर कुछ न बोले।

झीं-झीं करते झींगुर बोलें,
और उल्लू भी जगराते करता
चंदा भी तो जाग रहा,
जैसे मुझसे बातें करता।

सरक-सरक कर तारे जब,
मुन्ना को खूब डराते हैं
मुन्ना-मोहन दोनों,
झट माँ की गोद छिप जाते हैं।

मन जब जब दु:ख में हो,
आकर छत पर तारे गिनिए
जो चमक रहा है सबसे ज्यादा,
बस उस तारे को निहारा करिए।

दु:ख कब मिट जाएगा,
पता आपको नहीं चलेगा।
चंदा-तारों संग रहिए,
जीवन में कष्ट नहीं रहेगा॥