कुल पृष्ठ दर्शन : 150

You are currently viewing संवादहीनता बड़ी घातक

संवादहीनता बड़ी घातक

राधा गोयल
नई दिल्ली
******************************************

पारिवारिक संबंध हों या सामाजिक या दूसरे देशों के साथ हों… संवादहीनता की स्थिति सदैव घातक होती है। आपस में संवाद होता रहना चाहिए। उससे शांति के प्रयासों में सफलता मिलती है और जहाँ संवादहीनता की स्थिति आ जाती है, वहाँ गलतफहमियाँ मन में जन्म लेती हैं। दूसरों के बारे में हम गलत धारणाएँ बनाने में जरा भी देर नहीं लगाते और यही धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते इतना विकराल रुप ले लेती हैं कि शांति के सारे प्रयास असफल हो जाते हैं।
जैसे उत्तर कोरिया और अमेरिका में शांति वार्ता हुई। संवाद स्थापित हुआ तो शांति वार्ता सफल भी हो गई और जो डर था कि विश्व युद्ध का खतरा पैदा ना हो जाए…, क्योंकि उत्तर कोरिया के पास परमाणु बमों का बहुत बड़ा जखीरा है। अब यह वार्ता सफल हो गई है तो, विश्व ने कम से कम एक राहत की साँस ली है। कुछ देश ऐसे भी होते हैं कि, जितने मर्जी संवाद बनाए रखने और शांति के प्रयास करने की कोशिश करते रहो… उनकी गलतफहमी दूर करने की कोशिश करते रहो…, लेकिन फिर भी न तो उनकी गलतफहमी दूर होती है, न ही वे शांति के कोई प्रयास करते हैं…। उल्टा दूसरे देश पर ही अशांति फैलाने का आरोप मढ़ते रहते हैं, लेकिन तब भी संवादहीनता की स्थिति तो आनी ही नहीं चाहिए। जहाँ संवादहीनता की स्थिति आई…, समझो शांति के सारे प्रयासों पर विराम लग गया।
कभी-कभी पति-पत्नी के संबंधों में भी देखने में आता है कि, संवादहीनता के कारण एक-दूसरे से बेहद दूरियाँ हो जाती हैं। फिर आपस में अहम आड़े आ जाता है। वो सोचता है-पहले वह बोलेगी। वो सोचती है- पहले वह बोलेगा और सोच-सोच में जिंदगी निकल जाती है या विवाह विच्छेद तक की नौबत आ जाती है और पिसते हैं बेचारे बच्चे।ऐसी नौबत आनी ही नहीं चाहिए।
सामाजिक संबंधों में कभी ऐसा भी होता है कि, हमारे शांति के सारे ही प्रयास असफल हो जाते हैं। हम किसी की गलतफहमी दूर करने की लाख कोशिश करें, लेकिन उनकी गलतफहमी दूर नहीं होती। इस बात को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करना चाहूँगी-
सन् १९८१ की बात है। उन दिनों हमारी काॅलोनी में कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। दूध तक ५ किलोमीटर दूर जाकर लाना पड़ता था और एक पड़ोसी के साथ शाम के समय मेरे बच्चे दूध लेकर आते थे। मेरे पति उन दिनों एसएएस का प्रशिक्षण लेने के लिए जम्मू गए हुए थे। बच्चे बहुत छोटे-छोटे थे, इसलिए अकेले नहीं भेज सकती थी। उनके साथ भेजना मजबूरी थी। एक बार मेरे सगे मामा के लड़के (जिसकी शादी को मात्र डेढ़ महीना हुआ था और वह पत्नी को लेने के लिए मायके गया हुआ था।) का रास्ते में एक्सीडेंट हुआ और मृत्यु हो गई। तीज का दिन था। सभी सज-संवर कर भाभी के आने का इंतजार कर रहे थे कि, उनके साथ झूला झूलेंगे, किंतु खबर आई भाई की मौत की। उसके दाह संस्कार के बाद मैं अपने घर आ रही थी कि, मेरे पीछे-पीछे ही पड़ौसी की पत्नी मेरे घर आ गई और मुझसे बोलीं कि जरा यह पजामा काट दो। मैंने उनसे कहा भी कि मैं २ दिन से जागी हुई हूँ। सारा वाकया बताया। मेरी आँखें बुरी तरह से सूजी हुई थीं।उनको सारी बात बताने के बावजूद उनका यह कहना था कि, -“क्या हो गया ? कोई मर जाता है तो क्या घर के सारे काम छूट जाएंगे ? मुझे पजामा कटवाना बहुत जरूरी है। कल पहनना है।”
अंदर से दु:ख भी हुआ और उनकी सोच पर गुस्सा भी आया कि सारी बात बताने के बावजूद इतनी संवेदनहीन हैं कि, संवेदना प्रकट करने के बजाए इन्हें पजामा कटवाने की जल्दी मची हुई है। क्या मैंने सिलाई सीखकर लोगों की मदद करके कोई गुनाह कर दिया ? कॉलोनी के लोग मुझसे ही कपड़े कटवाने आते थे। कई बार सिलाई के लिए भी मेरे पास ही छोड़ जाते थे। घर के सारे काम करना, नौकरी करना और अपने बच्चों की पढ़ाई व परवरिश अकेले करना होता था।
एक बार पति जम्मू से आए तो वो तथाकथित मित्र मेरे पति से मिलने के लिए आए। बातों-बातों में जता दिया कि भाभी जी ने मेरी बीवी को नाराज कर दिया है, इसलिए उसने मुझे दूध लाने के लिए मना कर दिया था। यह बात जानकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि, मैंने क्या नाराज़ कर दिया। इतना जरूर था कि, पजामा न काटने की बात के बाद उन्होंने मेरे बच्चों को अपने साथ दूध के लिए ले जाना बंद कर था। जब मुझे इस गलतफहमी का पता लगा तो मैं उनके घर गई और उन्हें बताया कि “भाभी जी मैंने आपको बताया तो था कि मेरे मामा जी के लड़के की शादी को केवल डेढ़ महीना हुआ था और उसकी मृत्यु हो गई थी और मेरी हालत बहुत ज्यादा खराब थी। मैंने आपसे कहा भी था कि इसको रख जाओ अभी मेरा सर दर्द से फटा जा रहा है।”
“मुझे मालूम है आपने कहा था। कोई मर जाता है क्या काम रूक जाते हैं ? मैंने आपसे कहा भी था कि आज की आज पजामा काटना बहुत जरूरी है।”
क्या ऐसे संवेदनहीन लोगों से संवाद बनाए रखा जा सकता है…?
ऐसा ही कई बार आपसी रिश्तों में भी होता है। आप उनके लिए कितना भी कर दो, लेकिन उन्हें संतुष्टि नहीं होती और नाम रखने व ताना मारने में बिल्कुल पीछे नहीं रहते।
कितना भी हो, लेकिन संवादहीनता की स्थिति आ जाए, इस बात से सर्वथा असहमत हूँ। कोई आपको कितना ही बुरा-भला कहे और खासकर आपसी संबंधों में… एक निश्चित दूरी बनाकर रखो। न ज्यादा चिपको, न ही बोल-चाल बंद करो। केवल दु:ख-सुख में काम आते रहो, जिससे कि संवादहीनता की स्थिति पैदा न हो।
रिश्तों में गलतफहमियाँ इतनी गहरी जड़ें न जमा लें कि, एक-दूसरे का मुँह देखना भी गवारा न हो। और ऐसा न हो कि कभी संवाद स्थापित करना भी चाहो तो आपको शर्म आए, क्योंकि कभी ऐसा भी होता है कि मामूली-सी रंजिश से पचासों साल के रिश्ते अचानक टूट जाते हैं। एक बात बड़ी अच्छी लगती है-
‘दुश्मनी ऐसी करो कि इतनी गुंजाइश रहे,
फिर कभी हम दोस्त बन जाएँ तो शर्मिंदा ना हों।’

Leave a Reply