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सफर

डोमन निषाद
बेमेतरा(छत्तीसगढ़)

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चलो चलें हम,
अपनी मंजिल के लिए…।
अब क्यों रूकें हम,
अपनी महफिल के लिए…॥

कौन जानता है…?
क्या होगा इस जमाने में,
सबको चलना होता है,
एक सफर अनजाने में॥

सजी नहीं रहती है,
फूलों की मकसद की राहें।
कभी दर्द-भरी रहते हैं।
हर सफर के रास्ते।

फिर भी काँटों को हटाकर,
राही को आगे जाना होता है।
मुसीबतों को पीछे छोड़कर,
वह लक्ष्य को हासिल करना होता है।

बांध लो दृढ़ संकल्प की झोली,
तब होगी सबकी मन्नत पूरी।
नहीं फिर पछताना पड़ेगा,
क्यों नहीं की मैंने एक सफर की तैयारी॥

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