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मेंढकों का तलाक भी हो गया,अब तो थमो मेघराज…!

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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हाय ये आसमानी आफत! मध्य प्रदेश सहित देश के पश्चिमी हिस्से में मानसून ने जिस अड़ियलपन के साथ डेरा डाल रखा है,उसने बारिश की सारी रोमांटिकता को ही बेस्वाद कर दिया है। दो माह पहले जिस कारे बदरा को रिझाने प्रदेश की राजधानी के महादेव मंदिर में मेंढकों का ब्याह हुआ था,उनका भी बेरहम बादलों ने ‘तलाक’ करवा दिया है। मेघों की इस दंबगई को पता नहीं कवि कालिदास किस रूप में लेते,क्योंकि ऐसे अड़ियल बादलों को तो मेघदूत भी बनाना भी असंभव था। एक दफा जो आए तो जाने का नाम लेना तो छोड़िए,खिसकने की बात भी नहीं कर रहे।
उधर देश की राजधानी दिल्ली काली घटाओं के लिए तरस गई है,लेकिन ये वहां नहीं जा रहे। पता नहीं,इन बादलों का रिमोट किसके पास है। खुद मौसम विज्ञानी हैरत में हैं ‍कि, जिस सितम्बर में बादलों की विदाई की शहनाई बजती है, उसी महीने में बादल तांडव करने में मगन हैं। आलम यह कि बुद्धि देवता गणेश के आगमन और विसर्जन के ढोलों की ढमा-ढम और मोहर्रम के ताजिए के साथ बजने वाले ताशों की तड़तड़ाहट भी बादलों की गड़गड़ाहट में गुम होकर रह गई। ऐसा बरसों बाद हुआ,जब लोग इंद्र देवता को रिझाने रहने के बजाए उनसे अजीज आ गए। रिकाॅर्डों के पन्ने पलटें,तो प्रदेश में बारिश का रिकाॅर्ड टूटने की ही कगार पर है।
यकीनन,इस दफा बादलों ने जैसा गदर मचाया है,वैसा पिछली तीन पीढ़ी की याददाश्त में भी नहीं होगा। लगता है कि ये तमाम बादल चारों दिशाओं से उन घुसपैठियों की माफिक मध्यप्रदेश में घुसे चले आ रहे हैं,जिनका कोई एनआरसी रजिस्टर भी नहीं है। आवक का दबाव इतना है कि मेघों का एक रेला अपना पानी उड़ेल कर फारिग भी नहीं होता कि,दूसरा उसकी जगह अपनी टोंटी खोल देता है। इन बादलों के बरसने के तेवर और तासीर में भी आम बरसात की तुलना में जमीनी अंतर है। ये बादल आते हैं,छाते हैं और एकदम इस तरह बरस पड़ते हैं मानो कमांडो ट्रेनिंग करके आए हों। ये आपको सिर छुपाने का मौका भी नहीं देते और जद में आते ही इतना भिगो देते हैं कि आप ऐसे मूड में कोई फिल्मी गीत गुनगुनाने के काबिल भी नहीं रहते। मानो ये बादल आपकी प्यास बुझाने नहीं,आपको सबक सिखाने के लिए आए हैं।
चाहें तो इसे वक्त का बदलाव कह लें। सिर्फ दो माह पहले तक इस हृदय प्रदेश में इस बात के लिए हवन-यज्ञ आदि हो रहे थे कि हे मेघराज जरा जल्दी आओ और आकर जमकर बरसो। ऐसे बरसो कि तमाम रीते तालाब,बांध और नदियां पूर आ जाएं। खेतों में फसलें पर्याप्त पानी पीकर सोना उगलें। शहरों-गाँवों में पानी के रेले बह निकलें,और उसमें तैरती कागज की नावें अगली बारिश तक के लिए कहीं खो जाएं। सावन और आषाढ़ ब्रेक डांस करते दिखें,और रिमझिम बारिश में मस्ताते लोग किसी नदी किनारे जी-भर सिंके भुट्टे खाएं। यानी सब कुछ ऋतु चक्र की तयशुदा‍ ‍पटकथा की माफिक हो। पानी आए भी,प्यास बुझाए भी,नचाए भी, लेकिन वह इस तरह सताने वाला निकलेगा, यह तो किसी ने नहीं सोचा था। मौसम विभाग ने तो जेठ में यह चेताकर चिंता में डाल दिया था ‍कि,इस साल औसत से १ फीसदी कम बारिश होने वाली है,लेकिन मौसम की खूबी ही उसका मनचलापन है। मौसम विभाग की तो वह शायद ही सुनता है। जब सब लोग केरल से आने वाले मानसून का इंतजार बारात की तरह कर रहे थे,वही मानसून अब इतनी दिशाओं से और सिस्टम से आ धमक रहा है कि कहां-कहां देखें। इस लिहाज से मौसम विभाग की शब्दावली भी उलझाने वाली है। यूँ आम जिंदगी में ‘कम दबाव’ से तात्पर्य सुकून और कायदे से काम होना होता है,लेकिन मौसम विभाग की भाषा में ‘कम दबाव’ से मतलब भारी बारिश या तूफान से होता है। यह ‘कम दबाव’ भी आसपास के इलाकों में ‘ज्यादा दबाव’ के कारण बनता है। लिहाजा,हर तरह का दबाव झेल जाने वाला एमपी इस बार ‘कम दबाव’ से परेशान है। ‘कम दबाव’ की वजह से पानी से लबालब बादलों की द्रोणिकाएं(ट्रफ) बनती जा रही हैं और हर घड़ी बरसती जा रही हैं। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करें,बारिश की बेलगाम मार को कैसे रोकें ?
कहने को मौसम विभाग रंगीन(यलो,आरेंज और रेड आदि)अलर्ट जारी करता है,लेकिन बेतहाशा बारिश ने तो इन रंगों की रंगीनियत को भी बेरंग कर दिया है। यहां जिंदगी हर क्षण ‘रेड अलर्ट’ पर है। निचली बस्तियां तालाब में तब्दील हो गई हैं,तो पक्के मकान की छतें भी इंद्र देवता के आगे नतमस्तक होकर टपकने लगी हैं। दीवारों पर सीलन का बुखार है तो बाजार में उदासी छाई है। सूरज को तो घने काले मेघों ने मानो नजरबंद ही कर दिया है। घर में कपड़े सूखना भूल गए हैं। बरसाती से झांकती स्कूली बच्चों की मासूम आँखें बारिश की बौछारों को सहमते देख रही हैं,और सड़कों की तो बात ही बेकार है। चूंकि,बादल इन सड़कों पर सफर नहीं करते, इसलिए उन्हें इनकी बदहाली से क्या लेना-देना ?(महाकवि कालिदास को भी इसका पूरा अंदाजा रहा होगा। इसलिए,उन्होंने यक्ष का प्रेम संदेश किसी कूरियर वाले के बजाए मेघों के हाथ भिजवाया)। सड़कों पर चेचक की तरह उभरे आ पानी से भरे गड्ढे टर्राते मेंढकों के साथ राहगीरों और वाहनों का मुँह चिढ़ा रहे हैं।
आलम यह है कि,अब लोगों की आँखें आसमान की तरफ बादलों के बरसने की उम्मीद में नहीं ताकती,बल्कि बारिश बंद होने का कोई शुभ संकेत तलाशने की आस में देखती हैं,पर हर उम्मीद को मौसम विभाग का नया ‘टेरर अलर्ट’ ध्वस्त कर देता है कि बारिश की दबिश तो जारी रहेगी,जो करना है कर लो। ऐसे मामलों में अदालत में कोई याचिका भी नहीं लग सकती और न ही कोई विरोध प्रदर्शन असर पैदा करता है। सोशल मीडिया पर भक्तों और त्यक्तों का कोई अभियान भी बादलों को ट्रोल नहीं कर सकता,सिवाय कुदरत के आगे हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के। आखिर मेघों को मनाने लोगों ने क्या-क्या नहीं किया। प्रदेश की राजधानी में भरपूर बारिश के लिए मेंढक-मेंढकी के ब्याह का टोटका हुआ,लेकिन यह क्या ? मेघ जो बरसना चालू हुए तो दोनों के गले में पड़ी जयमाल के फूल भी सूख नहीं पाए। लगता है कि टोटके से नाराज बादल आकर धमक तो गए लेकिन उन्होंने लौटने का आरक्षण कराने से इंकार कर दिया है। इस अनचाही मेहमाननवाजी से परेशान लोगों ने लोगों ने मेंढक-मेंढकी का तुरंत तलाक भी करा दिया,फिर भी बादल है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहे। कुछ लोग इसे कुदरत से छेड़छाड़ का नतीजा बता रहे हैं। इंसानी करतूत की सजा यही है कि कुदरत की नेमत भी विनाश का कारण बन जाए।
यूँ तो कोई भी रिकाॅर्ड बनना और टूटना खुशी व उपलब्‍धि का सबब होता है,पर ऐसे रिकाॅर्ड टूटने से भगवान ही बचाए। मूर्धन्य कवि दादा माखनलाल चतुर्वेदी की ये पंक्तियां कुछ ऐसा ही कहती हैं-
“सूरज अनदेखा लगता है
छवियाँ नव नभ में लग आतीं,
कितना स्वाद ढकेल रही हैं
ये बरसातें आतीं-जातीं ?”

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