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समय…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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दाना चुगता आयु का वह, काल से उसका नाता है
समय पँख वाला होता है,
छूते ही उड़ जाता है।

छोड़ अक्ल के अंधे न बनो, दिखलाता किसे ठिठाई
किस पर तुम रोष दिखाते हो, दहशत है क्यों मचाई ?

पतझड़ ग्रीष्म बसंत झेलता, जीवन सबकी विथि है
यह वह तुम मैं यह जग सारा, धरती पर सभी अतिथि है।

किस पर फिर फुंफकारता है, विष किसने उसे पिलाया
समय खड़ा वह देख रहा है, नीचों की सब नीचताई।

रहा शेर एक समय फेर में, बनता बकरी बेचारी,
अपना समय रखा न्यायालय, समय बड़ा दंडाधिकारी।

भोले बन आँसू भर पूछे,
किस-किसने आग लगाई,
धुँआ-धुँआ चुगली कर देगा, छोड़ो यह झूठ रुलाई।

टूटा काँच छन-छनकर कण-कण,
किरचा भी बिखरा होगा
लाख समेटो फांस से काँच, कहीं न कहीं पड़ा होगा।

एक था दर्पण एक छवि थी, अब हर टुकड़े में परछाई
छोड़ न देते छवि लोभ में, चुभने कण को हम भाई।

जाग प्रसुप्त खोल नैन अब, स्वप्न असत का खोने दो
अभी बची है चिरनिद्रा भी, भय भूत भंग होने दो।

यह हृदय फंसे न मोह में,
सदा करें तनिक भलाई।
लेते रहे टोह भी कुछ-कुछ बढ़ सके न कहीं बुराई॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।