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सरला देवी की आहुति वाले संकल्प ने गांधी जी को आकर्षित किया

पुस्तक चर्चा,,,

इन्दौर (मप्र)।

यह उपन्यास गल्प कृति के रूप में पाठकों के लिए रचा है। सरला देवी जी की बौद्धिक प्रतिभा और देश की आजादी के युद्ध में खुद को आहुति देने वाले संकल्प ने गांधी जी को आकर्षित किया। गांधी जी और सरला जी दोनों ही राष्ट्र के प्रति बहुत ही समर्पित थे, परंतु दोनों के बीच निश्चल प्रेम था। एक आदर और सम्मान था। “अब यह बिछड़ना और अधिक कठिन लगने लगा, जिस जगह तुम बैठती थी उस ओर मैं देखता हूँ और उसे खाली देख कर बहुत उदास हो जाता हूँ”, यह उस खत का हिस्सा है जिसे गांधी जी ने सरलादेवी को २७ अप्रैल १९२० को लिखा। इससे यह समझा जा सकता है कि गांधी जी और सरलादेवी का प्रेम कितना निश्चल था।
मुख्य वक्ता डॉ. अलका सरावगी (दिल्ली) ने अपनी पुस्तक ‘गांधी और सरला देवी चौधरानी:बारह अध्याय’ के बारे में यह बात शनिवार को इन्दौर में कही। यह अवसर रहा हिंदी साहित्य में डॉ. सरावगी द्वारा लिखित उक्त पुस्तक (उपन्यास) पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनाला में सार्थक चर्चा का। चर्चा (सेमिनार) को अध्ययनशाला और हिन्दी साहित्य भारती द्वारा संयुक्त रूप से ‘तथ्यों से रचनात्मक सृजन’ विषय पर आयोजित किया गया। साहित्य अकादमी मप्र के निदेशक डॉ. विकास दवे और वरिष्ठ कवि प्रो. आशुतोष दुबे के विशिष्ट आतिथ्य में इस आयोजन में प्रारम्भ में अध्ययनशाला प्रमुख डॉ. सोनाली नरगुन्दे ने अतिथियों का स्वागत किया। माँ सरस्वती की वंदना एवं आरती के बाद भारती की इन्दौर अध्यक्ष और साहित्यकार डॉ. कला जोशी ने अपनी बात रखी।
डॉ. दवे ने पुस्तक को उल्लेखित करते हुए कहा कि, अलका जी ने गांधी जी और सरला जी के प्रेम को बहुत ही सहजता पूर्वक दिखाया है। गांधी जी और सरला देवी का एक ऐसा नैतिक प्रेम है, जिसको समझने के लिए हमको शायद १०० साल पुराने जीवन में उतरना होगा, जहां कोरा कागज भी प्रेम की कहानियों को बयां कर देता था। अलका जी ने बातों को ऐसे प्रस्तुत किया है कि, हर वाक्य एक तथ्य की तरह दिखता है।
प्राध्यापक प्रो. दुबे ने श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए उक्त उपन्यास की पर्याप्त जानकारी दी। इससे विद्यार्थियों को ये जानने का अवसर मिला कि, कैसे अलका जी ने अपने पहले उपन्यास ‘कलिकथा:वाया बायपास’ के प्रकाशन के बाद ही केंद्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कार पाया था। उन्होंने अलका जी के इस आठवें उपन्यास की बात करते हुए कहा कि, हम सभी गांधी जी के नाम और जीवनी से तो परिचित हैं, किंतु सरला देवी हमारे लिए अनअपेक्षित किरदार है, जिनका हिंदी साहित्य में ना के बराबर ही जिक्र किया गया है। यह उपन्यास मूलरूप से पत्राचार पर ही निर्भर रहा है, क्योंकि सरला देवी का नाम इतिहास में उतनी महत्वता से नहीं लिया जाता। उनके बारे में तथ्य निकाल पाना मुश्किल रहा होगा और एक सामान्य उपन्यास या कहानी से ज्यादा शोध इस उपन्यास में करना पड़ा होगा। प्रो. दुबे ने विद्यार्थियों को यह उपन्यास पढ़ने का सुझाव भी दिया।

चर्चा का संचालन रजनी झा ने किया। डॉ. नरगुन्दे ने सभी श्रोताजनों व विद्यार्थियों को इससे प्रेरणा लेने के लिए कहा और सबका धन्यवाद व्यक्त किया।

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