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सात जन्मों का बंधन

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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शादी में गाते हैं सात फेरे सात जन्मों का बंधन,
एक ही जन्म में तो लोगों को करना पड़ता क्रंदन।

पति को पत्नी नहीं पसंद, तो पत्नी को पति नहीं पसंद,
जीवन भर लड़ते रहते हैं बांध के दोनों कमंद।

किसी-किसी का निभता नहीं है एक जन्म,
तो कैसे निभेगा दोनों का सात-सात जन्म।

कोई पहले चला जाता है तो कोई बाद में जाता,
तो फिर सात जन्मों का बंधन कैसे है होता।

कोई जाकर जन्म ले लेता है किसी दूसरी जगह,
दूसरा जिंदा रहता है बीसों बरस अपनी जगह।

फिर कैसे होगा दोनों का नया जन्म का बंधन ?
तो फिर झूठा हुआ न ये सात जन्मों का बंधन।

एक जाकर दूसरे जन्म में जवान हो गया,
दूसरा पुराने जन्म में बूढ़ा हैवान हो गया।

जो एक जन्म साथ निभा नहीं है सकता,
वो सात जन्म क्या साथ है निभा सकता ?

ये बंधन-वंधन कुछ नहीं, सब जन्मों का खेला है,
एक जन्म में सब कुछ कर लो, ये तो एक मेला है।

‘दीनेश’ अपने-अपने कर्मों का सब भोग है,
विधि का लेखा कहो यही तो सब संयोग है।

होता है यदि पुनर्जन्म तो ये सब सत्य है,
यदि नहीं होता है पुनर्जन्म तो ये सब असत्य है॥

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