श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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जाना है अब मुझे सात समन्दर पार,
जहाँ हमारे प्रियतम, करते हैं इंतजार।
विरह की वेदना, अपने मन में हैं लिए,
कुंठित आकुल मन से, मुझे याद किए।
लगता है प्रियतम, अब धैर्य खो रहे हैं,
तभी तो सात समन्दर पार, बुला रहे हैं।
आओ प्रियतम, लेकर मेरे लिए नईया,
आज तुम बनो, मेरी नाव का खैवईया।
प्रियतम तुम खड़े, समन्दर के उस पार,
बिलख रही हूँ मैं, समन्दर के इस पार।
आ जाओ कंठ लगा लो, मन है बेकरार,
देर ना करो, ले चलो सात समन्दर पार।
चौथेपन की दहलीज़ों पर, उम्र है खड़ी,
शेष जीवन गुजारो संग में, घड़ी दो घड़ी।
देखेगा जमाना हम दोनों का अटूट प्यार,
अब जाना है मुझे भी, सात समन्दर पार॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |