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सीख

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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कर्म कर फल पाएगा,
व्यर्थ कुछ ना जाएगाl

सार्थक जीवन बिता ले,
वर्ना फिर पछताएगाl

चार दिन की जिन्दगी, कब समझ में आएगाl

कर्म अच्छा या बुरा हो,
जस किया तस पाएगाl

झूठे हैं रिश्ते ये नाते,
टूट ये भ्रम जाएगाl

कर्म कर ले पुण्य का तू,
साथ वो ही जाएगाl

झूठी है माया ये सारी,
सब धरा रह जाएगाl

ये जहां है इक सराय,
तू ना रुकने पाएगाl

जैसे आया था जहां में,
वैसे ही तू जाएगाl

बच पराई आग से तू,
वर्ना तू जल जाएगाl

छोड़ करना तेरी-मेरी,
हाथ कुछ ना आएगाl

काया है माटी का ढेला,
मिट्टी में मिल जाएगाl

ध्यान ईश्वर का लगाएगा,
चरण रज पाएगाl

ये मेरा दावा है पगले,
पार भव से जाएगाll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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