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सुकर्म-धर्म में सेवक बन

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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धरा-अबंर जब मंदिर के घंटे बजते हैं,
तब तनन-मनन के राग यूँ रमते हैं।

भक्ति भाव से प्रभु मिलन की आश में,
भूल के सभी राग द्वैष तो भजते हैं।

सुप्रभात जग जब जागे तो सोऊं मैं क्यूं,
सुखद समृद्ध से अपने में जगते‌ हैं।

पूज्येषु पतित पावन से गुंजन है ये धरा,
एक पुजारी बन सबों से मिलते हैं।

कल-कल छल-छल बहती पवित्र निर्मल, ‌
गंगा की जलधार‌ में पुण्य होते हैं।

सुकर्म-धर्म में कर्तव्यनिष्ठ हो सेवक बन,
जीवन निर्वाह निश्चल से करते हैं।

आदर्श सेवा‌र्थ राहों पर चलना ही सफ़र,
कभी भी न कोई काम बिगड़ते हैं।

स्वयं रक्षा में औरों से जा मिलना ‘किरण’,
धन्य! जन्म अवश्य ही हो जाते हैं॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।

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