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सुषमा स्वराज…राजनीति का अमिट आलेख

ललित गर्ग
दिल्ली

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पूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री एवं भारतीय राजनीति की संभावनाओं भरी ऊष्मा सुषमा स्वराज का ६७ साल की उम्र में निधन हो गया। उनका निधन न केवल भाजपा,बल्कि भारतीय राजनीति के लिए दुखद एवं गहरा आघात है। उनका असमय देह से विदेह हो जाना सभी के लिए संसार की क्षणभंगुरता,नश्वरता,अनित्यता,अशाश्वता का बोधपाठ है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। भाजपा के लिये एक बड़ा आघात है,अपूरणीय क्षति है। आज भाजपा जिस मुकाम पर है,उसे इस मुकाम पर पहुंचाने में जिन लोगों का योगदान है,उनमें सुषमाजी अग्रणी हैं। वे भारतीय राजनीति की सतरंगी रेखाओं की सादी तस्वीर थी। उन्हें हम भारतीयता एवं भारतीय राजनीति का ज्ञानकोष कह सकते हैं,वे चित्रता में मित्रता की प्रतीक थी तो गहन मानवीय चेतना की चितेरी जुझारु,निडर,साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थी।
सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति का एक आदर्श चेहरा थी। उन्होंने केन्द्रीय मंत्राी के अपने कार्यकाल के दौरान कई नए अभिनव दृष्टिकोण,राजनीतिक सोच और कई योजनाओं की शुरुआत की तथा विभिन्न विकास परियोजनाओं के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में सुधार किया,उनके जीवन में आशा का संचार किया। पिछली बार वे नरेन्द्र मोदी सरकार में एक सशक्त एवं कद्दावर मंत्री थी। भाजपा में वे मूल्यों की राजनीति करने वाली नेता,कुशल प्रशासक,योजनाकार थी। दिल्ली की राजनीति में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान था। यह महज संयोग ही है कि एक महीने से भी कम समय में दिल्ली ने अप २ पूर्व महिला मुख्यमंत्रियों को खो दिया है।
१४ फरवरी १९५२ को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत १९७० के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी। अम्बाला छावनी से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद सुषमाजी ने कानून की उपाधि ली। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद १९७३ में सुषमाजी ने उच्चतम न्यायालय से अपनी वकालत शुरू की। आपातकाल के दौरान सुषमाजी ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयीं। १९७७ में पहली बार सुषमाजी ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीता,और महज २५ वर्ष की आयु में राज्य की श्रम मंत्री बन कर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने की उपलब्धि हासिल की। दो साल बाद ही उन्हें राज्य जनता पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। १९८० के दशक में भारतीय जनता पार्टी के गठन पर सुषमाजी भाजपा में शामिल हो गयीं। वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। साल २००० में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद के रूप में संसद में वापस लौट आयी।
प्रखर और ओजस्वी वक्ता,प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक मानी जाने वाली सुषमा स्वराज अपने समय में श्री वाजपेयी के बाद सबसे लोकप्रिय ओजस्वी वक्ता थीं। वे एकमात्र नेता हैं,जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत,दोनों क्षेत्र से चुनाव लड़ा है। वे भारतीय संसद की ऐसी अकेली महिला नेता हैं,जिन्हें असाधारण सांसद चुना गया। वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थीं। ७ बार सांसद और ३ बार विधायक रह चुकी सुषमा स्वराज दिल्ली की पांचवीं मुख्यमंत्री,१५वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष,संसदीय कार्य मंत्री आदि रह चुकी हैं। विदेश में फँसे लोग बतौर विदेश मंत्री उनसे मदद मांगते और हजारों संकट में फंसे लोगों को सुरक्षित भारत लाने का काम उन्होंने किया।
२९ सितंबर २०१८ को संयुक्त राष्ट्र में दिया सुषमाजी का भाषण खूब चर्चा में रहा। इसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को परिवार के सिद्धांत पर चलाने की वकालत की। सुषमाजी ने २०१५ में भी संयुक्त राष्ट्र की महासभा में हिन्दी में भाषण दिया था और उस दौरान भी जम कर पाकिस्तान पर गरजीं थीं। २०१८ में सुषमा स्वराज ने यह एलान कर दिया था कि वे २१२१ का चुनाव नहीं लड़ेंगी।
सुषमा स्वराज की भाषण शैली और वाकपटुता का कोई जोर नहीं था। जब वह बोलती थीं,तो विपक्ष भी सन्न रह जाता था। उनके जवाब ऐसे होते थे,कि उसकी काट के लिए विरोधी को सोचना पड़ता था। वे सरल एवं सादगी पसंद भी थी। मौलिक सोच एवं राजनीतिक जिजीविषा के कारण उन्होंने पार्टी के लिये संकटमोचक की भूमिका भी निभाई। वे राजनीति में उलझी चालों को सुलझाने के लिये कई दफा राजनीतिक जादू दिखाती रही हैं। उनकी जादुई चालों की ही देन है कि वे अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रही हैं।
सुषमा स्वराज का निधन एक आदर्श एवं बेबाक सोच की राजनीति का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रंखला की प्रतीक थी। उनके निधन को राजनीतिक जीवन में शुद्धता की,मूल्यों की,राजनीति की,आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने,न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है। उन्होंने पांच दशक तक सक्रिय राजनीति की,अनेक पदों पर रही पर सदा दूसरों से भिन्न रही। वे जितनी राजनीतिक थी,उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थी।
भारतीय राजनीति की वास्तविकता है कि इसमें आने वाले लोग घुमावदार रास्ते से लोगों के जीवन में आते हैं,वरना आसान रास्ता है- दिल तक पहुंचने का। हाँ,पर उस रास्ते पर नंगे पांव चलना पड़ता है। सुषमाजी इसी तरह नंगे पांव चलने वाली एवं लोगों के दिलों पर राज करने वाली राजनेता थे,उनके दिलो-दिमाग में दिल्ली ही नहीं,समूचे देश की जनता हर समय बसी रहती थी। काश! सत्ता के मद, भ्रष्टाचार के कद व अहंकार की जद में जकड़े-अकड़े रहने वाले राजनेता उनसे एवं उनके निधन से बोधपाठ लें। निराशा,अकर्मण्यता, असफलता और उदासीनता के अंधकार को उन्होंने अपने आत्मविश्वास,साहसिकता,कर्मठता और जीवन के आशा भरे दीपों से पराजित किया।
उन्होंने हमेशा अच्छे मकसद के लिए काम किया,तारीफ पाने के लिए नहीं। खुद को जाहिर करने के लिए जीवन जीया,दूसरों को खुश करने के लिए नहीं। उन्होंने अपने जीवन को एक नया आयाम दिया और जनता के दिलों पर अमिट छाप छोडते हुए निरन्तर आगे बढ़ी। वे भारतीय राजनीति का एक अमिट आलेख हैं।
आपके जीवन की खिड़कियाँ राष्ट्र एवं समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास भारत की जनता सुदीर्घ काल तक करती रहेगी।
सुषमाजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता,क्योंकि ऐसे व्यक्ति मरते नहीं। वे हमें अनेक मोड़ों पर राजनीति में नैतिकता का संदेश देते रहेंगे कि घाल-मेल से अलग रहकर भी जीवन जिया जा सकता है… निडरता से,शुद्धता से,स्वाभिमान से।

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