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स्वतंत्र भारत की ऊँची उड़ान

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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आजाद भारत की उड़ान….

होंगे सच सपने अपने भी,
स्वतन्त्र भारत की ऊंची उड़ान
नवभारत, नवलक्ष्य सजाकर,
पहुँच बना रहा विश्व मचान।

स्वर्ण-चिड़िया जो युगों-युगों से,
पिंजरे आँसू रोती थी
जंजीर-दास्तां सब मिल काटी,
भले ही कड़ी कसौटी थी।
खुले विश्व जनतंत्र बनाकर,
‘भीम’ रच दिया स्वसंविधान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

क्षेत्र, धर्म, जाति से ऊपर,
निष्पक्ष चुनाव में नेक बने
एक-एक के मत से मिलकर,
विविध से हम थे एक बने।
लोकतंत्र का पर्व शुरू हुआ,
आहुति में मत का दान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

कदम बढ़ाए प्रगति पथ पर,
‘पंचवर्षीय’ सीढ़ियों से
विकास ने फिर पकड़ी रफ्तार,
जो रुकी हुई थी पीढ़ियों से।
विश्व पटल पर आगे बढ़कर,
फिर पाया खोया सम्मान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

स्वामीनाथ की थी अगुवाई,
हरित क्रांति का श्रीगणेश
खुद-खाकर औरों को पाला,
अन्न रह गया फिर भी शेष।
आपात जरूरत मदद को आगे,
भारत दरियादिल और महान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

बासठ-पैसठ की जंग में हमने,
दुश्मन को था दम दिखलाया
शरण में आया जो कोई भी,
जो मान था, उसको दिलवाया।
लद्दाख़-कारगिल फहरे तिरंगा,
सेना का ही यह गुणगान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

सुलझी हुई नीतियों को लेकर,
विश्व गगन पर चमक बनी
दोस्त के लिए सीना चौड़ा है,
दुश्मन पर है भौहें तनी।
‘अजस्र-तिरंगा’ फहराया है,
भले हो जग की, कोई उड़ान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

विज्ञान-ज्ञान से लोह मनवाया,
कलाम-चिदम्बरम गहन प्रयास
परमाणु-शक्ति-बिजली थी कौंधी,
दंग थी दुनिया, पाकर आभास।
हथियारों की होड़ नहीं है,
स्वरक्षा, मन में अभिमान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

अंतरिक्ष को छूकर हमने,
मंगल-चाँद को नाप लिया
जो दुनिया में कोई कर नहीं पाया,
उस संकल्प को पूरा किया।
प्रौद्योगिकी मशाल को लेकर,
पहुंच ब्रह्मांड तक हुई आसान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

सक्षम-नेतृत्व बागडोर से ही,
विकास रथ है अब तीव्र गति
कुछ कमियाँ भले लगती हो,
सबसे ऊपर है देशभक्ति।
योजन-नीति आयोजन से ही,
विकास चढ़ रहा अब परवान॥
होंगे सच सपने अपने भी…

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति,
‘भारत-अजस्र’ डंका बाजे
खेल-कौशल, कोई हो दंगल,
भारत-जन उसमें आगे।
दुनिया की इक्कीसवीं सदी में,
आजाद भारत की चर्चा-जहांन॥

होंगे सच सपने अपने भी,
स्वतन्त्र भारत की ऊंची उड़ान।
नवभारत, नवलक्ष्य सजाकर,
पहुँच बना रहा विश्व मचान॥

परिचय-हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में डी. कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्म तारीख १७ मई १९७७ तथा स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप सम्प्रति से राज. उच्च माध्य. विद्यालय (गुढ़ा नाथावतान, बून्दी) में हिंदी प्राध्यापक (व्याख्याता) के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। छोटी काशी के रूप में विश्वविख्यात बूंदी शहर में आवासित श्री मेघवाल स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद इसी को कार्यक्षेत्र बनाते हुए सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र विविध रुप में जागरूकता फैला रहे हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है, और इसके ज़रिए ही सामाजिक संचार माध्यम पर सक्रिय हैं। आपकी लेखनी को हिन्दी साहित्य साधना के निमित्त बाबू बालमुकुंद गुप्त हिंदी साहित्य सेवा सम्मान-२०१७, भाषा सारथी सम्मान-२०१८ सहित दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान-२०१९, साहित्य रत्न अलंकरण-२०१९ और साधक सम्मान-२०२० आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिंदीभाषा डॉटकॉम के साथ ही कई साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार पा चुके हैं। ‘देश की आभा’ एकल काव्य संग्रह के साथ ही २० से अधिक सांझा काव्य संग्रहों में आपकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। प्रादेशिक-स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं स्थान पा चुकी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य एवं नागरी लिपि की सेवा, मन की सन्तुष्टि, यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ की प्राप्ति भी है।