कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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जिसके चरित्र संग, खेलते हो खेल तुम,
सह पाओगे ना उस, देवता के ताप को।
जिसकी कृपा से रोजी, रोटी को कमा रहे हो,
रोक ना सकोगे उनके ही अभिशाप को॥
अभिमानी बन कर, दलदल में फँसे हो,
भगवान सदबुद्धि, देंगे कब आपको ?
एक मुष्टिका प्रहार, लंकनी को ढेर किया,
जानते नहीं हो, हनुमान के प्रताप को॥