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‘हर्ष’ का गुमनाम एहसास है `खामोश दर्द`

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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वर्तमान अंकुर प्रकाशन के बैनर तले सम्पादक निर्मेश त्यागी द्वारा प्रकाशित प्रमोद कुमार ‘हर्ष’ की पुस्तक खामोश दर्द का एक अलग ही स्थान है। पुस्तक को प्रसिद्ध कवि एवं लेखक राजेश मल्होत्रा ‘राज’ ने सम्पादित किया है। यह पुस्तक कहानियों एवं कविताओं का मिला-जुला संग्रह है।


पुस्तक में संग्रहित कविताओं की खासियत यह है कि सभी कविताएं पाठकों के अंतःकरण को जोड़ती है,तथा उन्हें स्वयं के अंदर कुछ तलाशने को विवश करती है।
“मेरी आशा मेरी अभिलाषा
हर पल बदल जाती है जिंदगी की परिभाषा”
यह संभवत उनकी पहली रचना है,मगर इसमें भी दिल का अवसाद झलकता है। खामोश दर्द शीर्षक से वह लिखते हैं-
“हर्ष गुमनाम होकर खामोश दर्द कभी बताते नहीं
दिल से जुड़े रिश्तों के एहसास कभी मरते नहीं”
इस पुस्तक में इसी प्रकार से दिल को छू जाने वाली ५० से भी अधिक कविताएं हैं। नियत,कसक,यथार्थ, कारवाँ,आसमान दे दो, इत्यादि कविताएं कवि के समाज एवं रिश्तों के संतुलन में उभरी पीड़ा को दर्शाती है। समाज का दोहरा व्यक्तित्व तथा रिश्तों का खोखलापन किस तरह से हमारे अंतर्मन को छलनी कर देता है,और हम खामोशी से इस दर्द को सहने पर बाध्य होते हैं,यही भाव इन कविताओं के मूल में है।
“रंगमंच जैसा यह संसार,लग रहा क्यों लाचार
खत्म कर इस अदाकारी को,कोई नहीं जाएगा साथ”
कुछ रचना प्रेम एवं राजनीति पर भी आधारित है,जिसमें भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पर लिखा कौन लिख पाएगा अति उत्तम है-
“काल के कपाल पर अब कौन लिख पाएगा
अंधकार है चारों ओर,अब कौन रोशनी लाएगा”
प्रेम कविताओं में इश्किया तथा दिल बेहद खूबसूरत बन पड़ा है।
“इतनी ऊंची भी नहीं उनके दिल क्यों दीवारें
ना जाने क्यों फिर रास्ते मैं लांघ नहीं पाता”
इसके अतिरिक्त इस संग्रह में लगभग ११ कहानियां भी हैं। सभी कहानियां संदेशात्मक तथा मनुष्य के सामाजिक द्वंद पर आधारित हैं। अनकहा दर्द में घरेलू हिंसा से पीड़ित नायिका का दर्द है,तो जीवन की आपा-धापी से घिरे एक बेटे की परेशानियां पछतावा कहानी में दिखती है,और पिता के अंतिम दर्शन न कर पाने का मलाल भी है।
लालच कहानी में पुत्र मोह में फँसा लालची समाज की झलक है,जबकि पड़ाव में एक वृद्धा की व्यथा का वर्णन किया गया है।
तोहफा कहानी में पति-पत्नी के रिश्तों के बीच नशे की दीवार दिखती है, और जिंदगी की हार में पुत्र और माता का अटूट प्रेम दिखा है। लड्डू गोपाल तथा कर्ज कहानी का ताना-बाना भी खूबसूरत ढंग से बुना गया है,जो पाठकों को पढ़ने में रोचक लगता है।
समग्र रूप से देखा जाए तो इस संग्रह में हर पाठक के लिए सामग्री मौजूद है। कहानी तथा कविता दोनों के पाठक इस पुस्तक को अवश्य ही पढ़ना चाहेंगे।

 

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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