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हर दिल अज़ीज थे कवि `सनन`

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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सादर श्रद्धांजलि………….


“मैंने प्यार पाया है महफिलों में लोगों से।
वरना मेरी जिंदगी तो जिंदगी नहीं होतीll”
इन पंक्तियों के लेखक उज्जैन(मध्यप्रदेश) शहर में पिछले तीन दशक से साहित्यिक गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में अपनी एक अलग पहचान वाले पं. अरविंद त्रिवेदी सनन ७ सितम्बर रविवार को अचानक हृदयाघात के कारण अनंत की यात्रा पर निकल गये। कविता,गीत,ग़ज़ल,दोहे,छंद सब-कुछ उन्होंने लिखे और सबसे महत्पूर्ण बात सामयिक रचना कर्म में उनका कोई तोड़ नहीं थाl देश में कोई भी घटना हो,या कोई विशेष अवसर हो वे त्वरित रचना लिख देते थे। जहाँ मंचों पर वे बहुत ही मनोरंजक और हास्य प्रधान प्रस्तुति दे कर श्रोताओं को खूब हँसाते थे,वहीं गोष्ठियों और पारिवारिक मंचों पर दर्शन और अध्यात्म से भरपूर रचना का पाठ करते थे। इसी लिए वे अक्सर अपनी ग़ज़ल में कहते थे-
“मैं जैसा हूँ,जहां भी हूँ,बड़ा महफूज़ हूँ यारों।
मुझे अच्छा नहीं लगता,किसी पहचान में रहनाll
सफर दो नाव का करना इसी को लोग कहते हैं।
जिगर में दर्द को पाले स्वयं मुस्कान में रहनाll”
उनका लेखन तो कसावट और छंद के मापदंड पर सही था ही,मंच पर उनकी प्रस्तुति अदम्य आत्मविश्वास से भरी होती थी, और आवाज में इतनी बुलंदी कि बिना माईक के पूरा सदन उनकी आवाज सुन सकता था। सनन जी ने अपने जीवन में कई रंगमंचीय नाटकों में भी काम किया और नाटक के गीत लिखे भी लिखेl इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि,गुणवंती नाटक के एक शीर्षक गीत में वे लिखते हैं-
“ओ गुणवन्ती मेरी प्यारी मेरी,महल न मुझको सुहायें।
कहाँ है वो मेरी फटी-सी गुदड़िया बिना उसके नींद न आयेll”
सननजी की विशेषता थी कि वे सभी के मित्र थेl अदावत नाम की कोई चीज उनके जीवन में थी ही नहींl एक बार जिसने उनको सुन लिया,वह उनका कायल हो गया। कृष्ण-सुदामा की मित्रता को ले कर उनका एक गीत बहुत प्रसिद्ध है,जो उज्जयिनी की महिमा के साथ वे प्रस्तुत करते हुए कहते थे-
“कभी सुदामा कृष्ण सरीखे,इस धरती पर विद्या सीखें।
नये दौर में हमने सीखे,जीने के कुछ नये तरीके।
तो आज भी ढूंढा करता हूँ,वो दिलदार कहाँ।
कहने को बस रही मित्रता,वैसा प्यार कहाँ।”
पिछले ८ साल से वे एक महत्वपूर्ण रचना मधुराधर के लिए सृजनरत थेl श्रीकृष्ण के चरित्र और वर्तमान में श्रीकृष्ण की महिमा को ले कर सनन जी ने एक गीतिकाव्य कृति मधुराधर की रचना थी,जो की कुछ महीनों पहले ही १११ छंदों में निबद्ध हो कर पूर्ण हो गईl इस रचना में उन्होंने एक पद में कहा है-
“क्या हिन्दू और क्या मुस्लिम सबको मधुराधर भाये।
कुछ कलाकार ऐसे भी फिल्मी दुनिया में आये।
जब युसूफ ने ओंठ हिलाये वे भजन रफ़ी ने गाये।
तो संगत नौशाद की सूची में क्या खय्याम नहींll
ये अधर व्यर्थ है तेरे,इनका कोई काम नहीं।
जब तक इन अधरों पर है मधुराधर नाम नहीं।”
उज्जैन के कवि सम्मेलनों में शहीद बलराम जोशी को समर्पित उनके गीत का पाठ होने के बाद उस ऊंचाई की कविता कोई नहीं पढ़ पाता था,यह उनके रचनाकर्म की श्रेष्ठतम् रचना है। रचना पाठ के पहले वे सीमा पर चौकस जवानों के सम्मान में एक मुक्तक कहते थे-
“हम जीते हर जंग यहाँ,नहीं गिराई साख को,
कभी शहीद हूआ कोई तो,शीश चढ़ाई राख को,
हम अर्जुन हैं वृक्ष न देखा,न देखा उस चिड़िया को-
हमने सदा लक्ष्य पर रक्खा उस चिड़िया की आँख को।”
अपने काव्य पाठ की शुरुआत सनन जी हमेशा एक ग़ज़ल के दो शेर से करते थे,जो माँ को समर्पित है-
“माँ अनपढ़ है पर बच्चों का मन पढ़ लेती है।
किस्से रोज नये जाने कैसे गढ़ लेती है।
उम्र,तगारी का दोहरा बोझा ले कर।
नये मकानों की सीढ़ी कैसे चढ़ लेती हैll”
पेशे से तीर्थ पुरोहित रहे सनन जी हरदिल अजीज थे। २९ जुलाई १९५९ को जन्में सनन जी अपने पैत्रिक कार्य को जीवनभर आगे बढ़ाते रहे। साहित्य जगत के कई प्रतिष्ठा सम्मान भी उन्हें मिले,दूरदर्शन और सब टी.वी. पर भी वे काव्य पाठ कर चूके थेl उनकी एक ग़ज़ल कृति हर घर में उजाला जाए प्रकाशित हुई है,और अगली कृति मधुराधर को प्रकाशित करवाने की तैयारी में लगे थे। सनन जी का यूँ एकदम चले जाना मित्रों के लिए तो दुखद है ही, साहित्य जगत के लिए भी अपूर्णीय क्षति है,क्योंकि सनन जी हरफनमौला कवि थे। सनन जी को विनम्र श्रद्धांजलि…।

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