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हाँ,वही थानेदार है

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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कोई और नहीं था वही थानेदार है,
मेरी दिल में उसका अधिकार है
रखा है दिल के कारागार में,
बांधा प्यार की डोर में
हुए बरसों छोड़ा नहीं,
सजा भी दे गया
चुपचाप गया,
किसीको
ढूॅ॑ढने।

कोई और नहीं था वही थानेदार है,
सच कहती हूॅ॑ वह समझदार है
कारागार में रखा है सबको,
पकड़ के बांधा हमको
नहीं कसूर बताया है,
खूब तड़पाया है
आजाद नहीं,
किया था
बन्द हूँ।

कोई और नहीं था वही थानेदार है,
दिल उसका लगता धारीदार है
चेहरा एकदम भोला-भाला,
वो दिल में डाका डाला
सच में वो थानेदार है,
आँखों में प्यार है
वह बेकरार है,
प्यार किया
जेल भी।

कोई और नहीं था वही थानेदार है,
कैसे रिझाऊॅ॑ मैं वह थानेदार है
मैं रोती हूँ तो वह हॅ॑सता है,
सच में वो प्यार करता है
कहा,मैं नहीं हूँ चोर,
अब खोल दो डोर
सुनता नहीं है।
थानेदार है,
पकड़ा॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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