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हिंदी के प्रति समर्पित हों, यही जिंदगी

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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हिंदी और हमारी जिंदगी….

लंदन के साहित्यकार का कथन है कि जब तक हिंदी को मानक स्वरूप नहीं दिया जाएगा, तब तक उसको वैश्विक भाषा के तौर पर स्थापित करना कठिन होगा। ये सच भी है कि, हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है।अंग्रेजी भाषा में ये खूबी देखने को नहीं मिलती। इसमें शब्दों के उच्चारण सर के अंगों से निकलते है। जैसे कंठ से निकलने वाले शब्द, तालू से, जीभ से। जब जीभ तालू से लगती, जीभ के मूर्धा से, जीभ को दांतों से लगने पर, होंठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द। अ, आ आदि शब्दावली से निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से बनकर निकलते हैं। इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है।वर्तमान में शुद्ध हिंदी खोने लगी है, जो चिंतनीय पहलू है। हिंदी के सरलीकरण के लिए अंग्रेजी व अन्य भाषाओं की घुसपैठ हिंदी भाषा को धीरे-धीरे कमजोर बनाकर उसे गुमनामी के अंधेरे में जा कर छोड़ देगी और हम ‘हिंदी दिवस’ का राग अलापते हुए हिंदी की दुर्दशा पर आँसू बहाते नजर आएँगे। सवाल ये भी उठता है कि, क्या हिंदी शब्दकोश खत्म हो गया ? हमें हिंदी भाषा को हमारी जिंदगी में शामिल करना होगा, बजाए दूसरी भाषा के सम्मोहन में बंधने के।

वर्तमान में हिंदी के बोलने, लिखने में अंग्रेजी व अन्य भाषाओं की मिलावट होने से उसे अब अलग करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हिंदी के लिए अभियान चलाने वालों द्वारा इसे अलग करना दुष्कर कार्य होगा। इस दिशा में सोचना होगा, ताकि हिंदी और हमारी जिंदगी की बोलने की गाड़ी हिंदी भाषा के पथ पर सही रूप से चल सके।

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL

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