नताशा गिरी ‘शिखा’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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रक्षाबंधन पर्व विशेष………..
चलो बता दूं रक्षाबंधन का इतिहास,
जिससे जुड़ा संस्कृति का एहसास।
वामन अवतार की कहानी सुना दूं,
सुनो आज अपनी जुबानी सुना दूं।
जिसमें राजा बलि था अति दानी,
उससे कहीं बड़ी उसकी बुद्धिमानी।
तप करके प्रसन्न किया प्रभु को,
वरदान में मांगा भगवन विष्णु को।
पाताल लोक में आओ सिधार,
कर दो अंधेरी धरा को उजियार।
देवलोक में छिड़ी तब त्राहि-त्राहि,
देखो माँ लक्ष्मी भी थोड़ा घबराई।
फिर रूप धरा अब निर्धन का,
पाताल लोक में लगाई गुहार।
बन याचक मांगा वर वरदानस्वरुप,
जो ले आए बलि उनके परमेश्वर को।
देखो दिन पूर्णिमा श्रावण मास,
रची प्रभु ने अनकहा एहसास।
देखो कच्चे धागों से बांध गई,
बलि को धन्य धान की रानी।
रक्षाबंधन की हुई अब शुरूआत,
बनते अनजाने कुछ रिश्ते खास।
द्वापर युग में दे गई अपनी निशानी,
यहाँ अटूट प्रेम की अनूप कहानी।
कृष्ण का जब उठा सुदर्शन,
शिशुपाल की गई थी गर्दन।
घायल हुई थी उनकी तर्जनी,
नहीं चलीं थी किसी की अर्ज़ी।
फाड़ साड़ी का तब इक छोर,
द्रोपदी भागी थी उनकी ओर।
कच्चे धागे से बंध गई इक डोर,
जीवन भर का कर्ज था आया।
चीर हरण से दुर्योधन वरण तक,
श्री कृष्ण भाई का फर्ज निभाया।
नहीं थमा कभी यह एहसास,
पिरोता रहा सदा नया आभास।
दिन पूर्णिमा श्रावण मास,
रक्षाबंधन का दिन ये खास।
कच्चे सूत का जिसे न था एहसास,
वह भी बना रहा इस रिश्ते की आस
मुगल युग की भी कहानी बताऊँ,
बोलो हुमायूँ को तब कैसे बिसराऊँ।
कर्मवती ने भेजा था राखी,
कभी चित्तौड़ के संरक्षण का।
जीवनपर्यंत खड़ा रहा हुमायूँ,
मुँहबोली बहना के रक्षण में।
रक्षाबंधन का यह अमूल्य इतिहास,
कण-कण को बतला दे इसका साज।
यूँ ही न सजाए कलाईयों को आज,
बहना की रक्षा में रखें खुद को बाध्य॥
परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”