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होली के सात रंग

विश्वम्भर पाण्डेय  ‘व्यग्र पाण्डे’
गंगापुर सिटी(राजस्थान)
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होली का नाम लेकर उसने छुआ मुझे,
स्पर्श में पर उसके होली कोसों दूर थी।

वो मुस्करा के रंग लगाकर चला गया,
रंग ऐसा चढ़ा मुझ पर उतरता ही नहीं।

रगड़-रगड़ के कितने साबुन घिस दिये,
होली के रंग कैसे हैं कि उतरते ही नहीं।

मैं ढूंढ नहीं पाया उसको हुजूम में,
चेहरे पे कितने रंग चढ़ाये हुए था वो।

एक-एक दिन वो गिनता होगा वर्ष भर,
होली के दिन रंग लगाने से चूकता नहीं।

देवर भाभी का रंग आजकल दिखता नहीं,
शायद बाजार में वो रंग बिकना बंद हो गया।

ससुराल की होली भी कभी बड़ी अजीब थी,
पिटते थे जनाब फिर भी मन में ना मलाल था॥

परिचय:विश्वम्भर पाण्डेय का उपनाम व्यग्र पाण्डे हैl जन्म तारीख-१ जनवरी १९६५ और जन्म स्थान-गंगापुर सिटी हैl स्थाई पता गंगापुर सिटी में हैl राज्य राजस्थान के श्री पांडे का कार्यक्षेत्र-शिक्षा विभाग हैl इनकी लेखन विधा-ग़ज़ल,गीत,कविता,लघुकथा आदि हैl आपको हिंदी का भाषा ज्ञान हैl प्रकाशन में-`कौन कहता है`(काव्य-संग्रह)तथा `पाण्डे जी कहिन`(काव्य-संग्रह) आपके नाम हैl कई सामाजिक व साहित्यिक सम्मान आपको मिल चुके हैं। लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक विसंगतियों पर लिखना हैl प्रेरणा पुंज-पंत व निराला हैl रुचि-साहित्य लेखन हैl

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