अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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अमूमन बजट को लेकर आम आदमी की सोच यही रहती आई है कि सरकार राहतों के तोहफे देगी या फिर करों के बोझ से दम निकाल देगी। केन्द्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन के चौथे बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है। यह वैसा ही सीधा-सपाट बजट है,जैसा कि इसे पढ़ते समय मंत्री के चेहरे का भाव था। राहत की बात इतनी है कि अगर उन्होंने ज्यादा कुछ दिया नहीं तो ज्यादा लिया भी नहीं। असल में यह बजट अगले २५ सालों की दीर्घकालीन योजना की एक झलक है,जिसका लक्ष्य आजादी के शताब्दी वर्ष के भावी भारत का निर्माण है। ‘आत्मनिर्भरता’ और ‘मेक इन इंडिया’ इसके सारथी हैं। अच्छी बात यह है कि इतने आगे की सोची जा रही है और खराब बात यह है कि आज की तकलीफों को कम करने की खास चिंता बजट में नहीं है। आम तौर पर बजट में वित्त मंत्री २०-२० क्रिकेट की तरह राहतों और तोहफों के चौके-छक्के मारना पसंद करते हैं,लेकिन वित्त मंत्री ने शायद टेस्ट मैच की मानसिकता से बजट तैयार किया है,यानी आने वाला कल सुहाना हो सकता है,अभी तो आप दिक्कतों को झेलते रहिए। मोटे तौर पर यह बजट न तो राजनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है,न सामाजिक क्षेत्र को केन्द्रित करके। यह शुद्ध रूप से आर्थिक बजट है,जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के मूलभूत घटकों यथा अधोसंरचना,डिजीटलाइजेशन, लाॅजिस्टिक्स औद्योगिक तथा ऊर्जा क्षेत्र को मजबूत करना है। यह माना गया है कि लोगों की वर्तमान दिक्कतें जो भी हों,लेकिन दीर्घकाल में अगर बुनियादी क्षेत्रों में निवेश और सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी तो रोजगार जैसी सबसे बड़ी समस्या का निदान अपने-आप होगा। काफी हद तक यह बात सही भी है। वित्त मंत्री ने अगले ३ सालों में कुल ३० लाख नौकरियां सृजित करने का दावा किया है,लेकिन यह कैसे होगा,यह बहुत साफ नहीं है।
उम्मीद जताई जा रही थी कि ५ राज्यों में विस चुनाव और सालभर चले किसान आंदोलन को ध्यान में रखते हुए किसानों के हक में कोई बड़ी घोषणा हो सकती है,पर वैसा नहीं हुआ। कुल मिलाकर संदेश यही है कि वित्त मंत्री कोविड महामारी के कारण कमजोर हुई अर्थ व्यवस्था के तेजी से सुधार में और जान फूंकना चाहती हैं।
इसे ‘योजनाबद्ध बजट’ कहा जा सकता है, जिसमें आर्थिकी के समक्ष वर्तमान और भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम व दूरगामी उपाय हैं। इसमें आर्थिक गतिविधियों को हर तरीके से प्रोत्साहित करना,कोविड के कारण तेजी से बढ़ी बेरोजगारी को काबू करने की बात कही गई है।
वित्त मंत्री आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमान से उत्साहित दिखीं। जब अर्थ व्यवस्था पटरी पर आ रही हो तो उसे और तेज करने के लिए सकारात्मक और दूरदर्शी नीतियों की दरकार होती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के बजट में आश्वस्ति का यही भाव था। माना जा रहा है कि स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ पर देश की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में निवास करेगी। इसलिए बजट में बड़े शहरों का उल्लेख है। छोटे व मझले शहरों पर भी आबादी का दबाव बढ़ेगा। इसके लिए अभी से जरूरी अधोसंरचना और जरूरी बुनियादी सुविधाएं जुटानी होंगी। समावेशी विकास,उत्पादकता में वृद्धि,पूंजी निवेश,ऊर्जा परिवर्तन,जलवायु कार्य योजना पर भी वित्त मंत्री ने पूरा ध्यान दिया है।
किसान आंदोलन के मद्देनजर सरकार किसानों की समस्याएं हल करने की दिशा में सोच रही है। शायद इसीलिए बजट में ‘एक जिला एक उत्पाद’ की तर्ज पर ‘एक स्टेशन एक उत्पाद योजना’ की शुरुआत होगी। रेलवे छोटे किसानों और उद्यमों के लिए कुशल लॉजिस्टिक्स विकसित करेगा।
बजट भाषण में वित्त मंत्री का मुख्य जोर ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ सेवा,ई-बैंकिंग पर दिखा। यह इस बात का संकेत है कि देश में डिजिटल(अंकीय)लेन-देन तेजी से बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने देश में पहले डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना का भी ऐलान किया।
आगामी २५ सालों के मद्देनजर देश में बुनियादी अधोसंरचना को तेज करने के लिए बजट में पीएम गति शक्ति परियोजना का जिक्र एक अहम बिंदु है। बजट में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने की बात तो कही गई है,लेकिन महंगाई से परेशान आम आदमी को राहत देने की कोई बात नहीं है।
इस बार बजट में सहकारी समितियों को छोड़कर बाकी किसी क्षेत्र को खास कर राहतें नहीं दी हैं। इस दृष्टि से सर्वाधिक निराशा मध्यम व वेतनभोगी वर्ग को हुई है, जिसे आयकर में राहत और स्टैंडर्ड डिडक्शन में छूट बढ़ने की उम्मीद थी। दरअसल सरकारी,अर्ध सरकारी वेतनभोगी वर्ग पर अब दोहरी मार पड़ेगी।
कुल मिलाकर वित्त मंत्री ने तुष्टिकरण के बजाए आर्थिक विकास के मुख्य कारकों को त्वरण देने पर ज्यादा जोर दिया है। यह मानकर कि अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी तो देश में चहुमुंखी विकास होगा। कर राजस्व बढ़ेगा तो पूंजी निवेश भी बढ़ेगा। निवेश बढ़ेगा तो रोजगार के अवसर स्वत: पैदा होंगे। प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी तो गुणवत्ता भी बढ़ेगी। यही इस बजट का निहितार्थ है।