दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************
दुनिया उलझी है रिश्तों में,
हम तो जी रहे हैं किश्तों में।
किसी की बीवी किसी की साली,
किसी की साली किसी की घरवाली
किसी की बहना किसी की बीवी,
किसी की बीवी किसी की मम्मी
किसी की बीवी किसी की बहना,
मिल-जुल के ही सब दुःख है सहना।
किसी की मम्मी किसी की बीवी,
किसी की बुआ किसी की मम्मी
किसी की मम्मी किसी की फुआ,
सब मिल देते एक-दूजे को दुआ
लगते हैं सब रिश्ते सुलझे हुए,
पर सब एक-दूजे में उलझे हुए।
रिश्तों का ये उलझना व सुलझना,
आपस में इनका ताना-बाना बुनना
इस गड़बड़झाले को कठिन है समझना,
मुझे तो एक ही रिश्ता लगता है सही
जो सारी दुनिया हमेशा रहती है कही,
माँ-बाप भी कहते हैं-
“मात-पिता तुम मेरे शरण गहूं मैं किसकी,”
बेटा-बेटी भी कहते-
“मात-पिता तुम मेरे शरण गहूं मैं किसकी”
तो सभी आपस में सब भाई-बहन ही हुए।
अगर नहीं समझे तो इस तरह समझिए,
ए=बी, बी=सी इसलिए ए=सी
माँ-बाप, बेटा-बेटी, पति-पत्नी तभी,
एक परमात्मा की हैं संतान सभी,
अब तो सब बात सबके समझ आई
सब हैं आपस में बहन और भाई।
तो ये हुए जमाने के उलझते रिश्ते,
आध्यात्मिक दृष्टि से सुलझे रिश्ते॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।