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मैं तुझसे प्रीत लगा बैठी

सुनीता रावत 
अजमेर(राजस्थान)

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तू चाहे चंचलता कह ले,
तू चाहे दुर्बलता कह ले
दिल ने ज्यों ही मजबूर किया,
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठी।

यह प्यार दीए का तेल नहीं,
दो-चार घड़ी का खेल नहीं
यह तो कृपाण की धारा है,
कोई गुड़ियों का खेल नहीं।
तू चाहे नादानी कह ले,
तू चाहे मनमानी कह ले
मैंने जो भी रेखा खींची,
तेरी तस्वीर बना बैठी।

मैं चातक हूँ तू बादल है,
मैं लोचन हूँ तू काजल है
मैं आँसू हूँ तू आँचल है,
मैं प्यासी हूँ तू गंगाजल है।
तू चाहे दीवानी कह ले,
या अल्हड़ मस्तानी कह ले,
जिसने मेरा परिचय पूछा,
मैं तेरा नाम बता बैठी।

सारा मदिरालय घूम गई,
प्याले प्याले को चूम गई
पर जब तूने घूँघट खोला,
मैं बिना पिए ही झूम गई।
तू चाहे पागलपन कह ले,
तू चाहे तो पूजन कह ले,
मंदिर के जब भी द्वार खुले,
मैं तेरी अलख जगा बैठी।

मैं प्यासी घट पनघट की हूँ,
जीवन भर दर-दर भटकी हूँ,
कुछ की बाँहों में अटकी हूँ,
कुछ की आँखों में खटकी हूँ।
तू चाहे पछतावा कह ले,
या मन का बहलावा कह ले,
दुनिया ने जो भी दर्द दिया,
मैं तेरा गीत बना बैठी।

मैं अब तक जान न पायी हूँ,
क्यों तुझसे मिलने आयी हूँ
तू मेरे दिल की धड़कन में,
मैं तेरे दर्पण की छाया हूँ।
तू चाहे तो सपना कह ले,
या अनहोनी घटना कह ले,
मैं जिस पथ पर भी चल निकली,
तेरे ही दर पर जा बैठी।

मैं उर की पीड़ा सह न सकूँ,
कुछ कहना चाहूँ, कह न सकूँ,
ज्वाला बनकर भी रह न सकूँ,
आँसू बनकर भी बह न सकूँ।
तू चाहे तो रोगी कह ले,
तू चाहे तो मीरा कह ले।
मैं तुझे याद करते-करते,
अपना भी होश भुला बैठी॥