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आंतरिक शक्ति से रचिए नया इतिहास

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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शक्ति एक अहसास है,एक आभास है,अपने सम्पूर्ण होने के गर्व का,अधूरापन तो टूटन का ही प्रतीक है,उसको हर हाल में पूरा करने के प्रयास में जुटे रहकर विजय पा कर ही दम लेना है। हममें से कोई भी अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर दिखने में अशक्त होते हुए भी बड़ी चुनौती को पार कर एक अलग ही नया इतिहास रच सकता है। अधिक दूर क्यों जाएं,हमें तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसी आंतरिक शक्ति के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ले भारतमाता को स्वाधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराया। हमें स्वयं को सदा यही विश्वास दिलाना है कि हमें समस्याओं और जीवनभर जीतने के लिए,सुखी होने के लिए अदभुत,अभूतपूर्व,असाधारण जीवन जीने के लिए बनाया गया है। अपने विचारों व भावनाओं द्वारा ही हम अपने आसपास सकारात्मकता या नकारात्मकता का
वातावरण बना देते हैं। केवल एक शब्द ही हमें जीवन के सारे बोझ व दर्द से मुक्ति दिला देता है,वह शब्द है-‘ प्रेम।’ हमारे मन में जो भी बनने,करने या पाने की प्रबल इच्छा है,वह प्रेम की वजह से ही उत्पन्न होती है। यह प्रेम व्यक्तिगत या आपसी भी हो सकता है,देश या धर्म के प्रति भी। ये प्रेम ही तो शक्ति के रूप में प्रस्फुटित होता है। यही कुछ कर गुजरने के हमारे इरादे को मज़बूत कर हर हाल में सफलता की ओर अग्रसर करता है-
“बांधे जाते इंसान कभी,तूफान न बांधे जाते हैं,
काया जरूर बांधी जाती,बांधे न इरादे जाते हैं।”
तो,ये इरादा ही मंजिल तक ही पहुंचा देता है। कामयाबी की नई इबारत लिख देता है।
हमें तो बस यही करना है कि,जटिलता में सरलता खोजें,विवाद में सदभाव खोजें,
अवसर तो वास्तव में मुश्किलों के बीच में ही छिपा होता है। यदि हम अनावश्यक छोटी-छोटी बातों को ज्यादा महत्व देंगे तो न अच्छा महसूस कर पाएंगे,न ही कुछ नया रच पाएंगे।कोई भी चीज़ अच्छी या बुरी नहीं होती,सिर्फ हमारी सोच ही उसे वैसा बना देती है। हमें तो अपनी सोच में परिवर्तन कर स्वयं को शक्ति का प्रतीक बन यह अहसास कराना है-
“हम उफनती नदी हैं,हमको अपना कमाल मालूम है,
हम जिधर भी चल देंगे,रस्ता अपने-आप बन जाएगा।”
जरा यूँ भी समझिए कि रूद्रावतार संकट मोचक हनुमानजी को विशाल शक्ति पुंज होते हुए भी हज़ार योजन का समुन्द्र लांघने के समय नल-नील, जामवंत आदि को उनकी महान शक्तियों(जो श्राप के कारण उनको विस्मृत थीं)की याद दिलानी पड़ी थी। आज हम भारतीयों को भी फिर से अपने प्राचीन गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखने हेतु अपनी शक्तियों का स्मरण करना होगा। ऐसे हालात में जब आज पूरा विश्व एक महामारी के संकट से जूझ रहा है,१५ लाख से ऊपर लोग संक्रमित हैं,८५ हज़ार से अधिक काल के गाल में समा चुके हैं। जापान,चीन,स्पेन,रूस, अमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी और ब्राजील जैसी महाशक्तियों ने इसके आगे घुटने टेक दिए हैं। कोई निदान न मिलने के कारण सब अपने अपने घरों में कैद हैं,तथा भारत भी
इसकी चपेट में आ चुका है। ऐसे में जब लोगों की नासमझी के कारण हालात भयावह होते जा रहे हैं,प्रशासन पूरी ताकत व ऊर्जा के साथ सामना करने में जुटा है,एवं भारत ने विश्वगुरु बनकर पहले भी गौरव अर्जित किया है,तो अब सभी को एक शक्ति का स्त्रोत बन कर जूझते हुए विजय पानी है। अपनी शक्तियों का फिर नए सिरे से स्मरण कर, शक्तिपुंज बन नया इतिहास ही रच देना है। हममें वो शक्ति है,हम ऐसा कर सकते हैं,कर के रहेंगे,करना ही है-
“कौन कहता है,आसमां में छेद नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!”
यकीन मानिए,तबियत से उछाला गया यह पत्थर एक नए युग का सूत्रपात करेगा। उठो, जागो,इस बार युद्ध क्षेत्र में नहीं,घर में ही डटे रहे कर,आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नया विलक्षण और अनुपम इतिहास रच दो।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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