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डरना नहीं,बचना है..

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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‘कोरोना’ की इतनी अधिक भयानक भयावहता ने तो यह बात तय ही कर दी है कि,आपको इस के डर के व्यापक प्रभाव से लम्बे समय तक घर में ही रहने के लिए अपने -आपको हर हाल में संकल्पबद्ध रखना है। इस डर का हाल देखिए कि इस डर ने,महा डर ने बड़ी-बड़ी महाशक्तियों को भी बौना कर दिया है। जो अपने डर की हुंकार से छोटे -कमज़ोर देशों पर धौंस जमाते थे,उनको ऋण की खैरात देते और हथियार दे कर हमेशा के लिए अपनी हेंकड़ी जमाते थे,आज बेबस हैं। अंदर ही अंदर क्षुब्ध है,न कुछ सूझ रहा है,न ही अधिक कुछ कर पा रहे हैं। बस अलगाव (आइसोलेशन),’सामाजिक (शारीरिक) दूरी’ जैसा ही समझ आ रहा है। हमें समझना होगा कि यह ‘तालाबंदी’ और कर्फ़्यू हमारे ही जीवन की रक्षा के लिए है। अधीर,चिंतित हो कर एकदम दुकानों पर भीड़ का जमा होना तालाबंदी के उद्देश्य को ही खत्म कर देगा,भीड़ में ही संक्रमण की आशंका रहती है,तभी तो प्रधानमंत्री को २१ दिन के लिए सम्पूर्ण तालाबंदी की घोषणा करनी पड़ी है। इस देश में लोग एकदम ही
दहशत में हो जाते हैं,जिससे हालात सम्भालने में बहुत परेशानी हो जाती है। हरेक को यह सोचना पड़ेगा कि मौजूदा हाल में जिंदा रहने के लिए घर में ही रहना कितना जरूरी है। कोरोना महामारी की भयावहता को यूँ समझिए कि,विश्व में पहले १ लाख तक
संक्रमितों की संख्या ६७ दिन में,२लाख तक पहुंचने में ११ दिन व ३ लाख तक पहुंचने में मात्र ४ दिन लगे। बड़े-बड़े देशों में हर प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं हमारे यहाँ से बहुत बेहतर हैं,फिर भी कोरोना के प्रभाव को कम नहीं कर पाए। उन देशों से मिले अनुभवों को देखते हुए ही यह सब करना पड़ा है।
पूरे राष्ट्र को आत्मसंयम व अब एकजुटता से इस महाअभियान को हर हाल में सफल बनाना ही होगा,तभी हम बचेंगे,हम दिखेंगे, हमारी पीढ़ियों का अस्तित्व बचेगा। सिर्फ सरकार के सहारे ही इससे नहीं निपटा नहीं जा सकता,समग्र अर्थव्यवस्था व समाज को तैयार होना होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ ने बड़े स्तर पर आर्थिक मंदी की आशंका जताई है।
भारत में सभी सरकारी अस्पतालों व अन्य प्रतिष्ठानों में अलगाव वार्ड बनाए जा रहे हैं। सेना भी अपने स्तर पर पूरा सहयोग कर रही है,सबको एकजुट हो दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर इस भयानक विपदा में सहयोग करना होगा। अभी तक इसका इलाज पूरे विश्व में ढूंढा नहीं जा सका है,ऐसे में बस बचाव,सावधानी,सुरक्षा ही इसका इलाज़ है। हाथों को बार-बार साबुन से अच्छी तरह धोना,प्रक्षालक(सेनिटाइजर) का प्रयोग,भीड़-भाड़ से अपने को दूर रखना,हाथ मिलाने से परहेज करना,कम से कम एक फुट की दूरी रखना आदि ऐसे उपायों से कुछ हद तक बचा जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सरकार के प्रयासों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। इस देश की यह विडंबना है कि यहाँ मौत का भी व्यापार होता है। बड़े स्तर पर मुखौटे व प्रक्षालक की कालाबाजारी की जा रही हैं। इन पर व रोजमर्रा की वस्तुओं के अनाप-शनाप दाम लेने वालों पर अब सरकार सख़्ती से पेश आ रही है। सरकार अपने स्तर पर बहुत ही सराहनीय प्रयास कर रही है,बस जरूरत है न डरने की! विषाणु इतना खतरनाक नहीं है,जितना इसका डर खतरनाक साबित हो रहा है। अब निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठन सहित सामाजिक संगठन,बड़े धनाढ्य भी मदद के लिए आगे आ रहे हैं। अचानक इतनी अधिक बढ़ गई इस विपदा में हम सबको भी अपने स्तर पर आगे आना होगा। ध्यान रखें,हमारे पास- पड़ोस में आजीविका के अभाव में कोई भी भुखमरी का शिकार न हो। किसी की मदद करके कमाया पुण्य हमें सन्तोष के साथ जीने की जिजीविषा भी देगा।
इस समय यदि हम बाहर नहीं जा सकते,तो क्या हुआ,अपने अंदर तो जा सकते हैं। इस समय का उपयोग हम घर में ही बैठ ध्यान, योग पाठ-पूजा,स्वाध्याय से कर सकते हैं।अपने अंदर बसी हुई शक्ति को पहचानें। मुझे एक बात समझ नहीं आई,वो बड़ी-बड़ी भविष्यवाणी करने वाले,भाग्य बताने वाले बड़े नामी-गिरामी स्वनामधन्य ज्योतिषी कहाँ चले गए,अंतर्ध्यान हो गए!
केन्द्र व राज्य सरकारें युद्ध स्तर पर काम कर रहीं हैं। केन्द्र सरकार ने पहले १५००० व अब १ लाख ७० हजार करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज दिया है। फिलहाल विषाणु का इलाज़ न मिलने के कारण बस सावधान रह कर ही बचाव करना है। जान है तो जहान है,बार-बार हाथ धोते रहिए।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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