डॉ.सत्यवान सौरभ
हिसार (हरियाणा)
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दुःशासन खड़े चीरहरण को देख कर,
दरबारी सब मौन!
प्रश्न करे अँधराज पर,विदुर बने वो कौन।
राम राज के नाम पर,कैसे हुए
सुधार।
घर-घर दुःशासन खड़े,रावण है हर द्वार॥
कदम-कदम पर हैं खड़े,लप-लप करे
सियार।
जाये तो जाये कहाँ,हर बेटी लाचार॥
बची कहाँ है आजकल,लाज-धर्म की डोर।
पल-पल लुटती बेटियां,कैसा कलयुग घोर॥
वक्त बदलता दे रहा,कैसे-कैसे घाव।
माली बाग़ उजाड़ते,मांझी खोये
नाव॥
घर-घर में रावण हुए,चौराहे पर कंस।
बहू-बेटियां झेलती,नित शैतानी दंश॥
वही खड़ी है द्रौपदी,और बढ़ी है पीर।
दरबारी सब मूक है,कौन बचाये चीर॥
छुपकर बैठे भेड़िये,लगा रहे हैं दाँव।
बच पाए कैसे सखी,अब भेड़ों का गाँवll