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भोर निराली

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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पूर्व दिशा से फूट रही सूरज की लाली,
निकल नीड़ से फुनगी पर आ चिड़िया चहकी
लदी हुई फूलों से बेलें लह-लह महकी,
बोल उठी झुरमुट में बैठी कोयल काली।
लघु जीवन ने देखी फिर यह भोर निराली,
सुप्त हृदय की बुझी-बुझी आशाएँ दहकी
आँख सुनहरा स्वप्न देखने फिर से बहकी,
किरणों ने भर दी धरती की झोली खाली।
स्वर्ण-रश्मि की अठखेली का यह जग आँगन,
मानव बढ़ता नव उमंग ले कण्टक पथ पर
हरियाली के दृश्य कई आँखों में भरता,
साथ भोर के नभ छूने निकला अपना मन।
लौट शाम को पंछी-सा वापस आता घर,
खिला अभी जो फूल झूम डाली से झरता॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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