कुल पृष्ठ दर्शन : 307

बोली

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
*************************************************
बोली-
बोली मीठी बोलना,कहते संत सुजान।
यही करे अंतर मनुज,कोयल कागा मान।
कोयल कागा मान,मनुज सच मीठा बोले।
झूठ बोल परिवेश,हलाहल मत तू घोले।
शर्मा बाबू लाल,दवा की बनकर गोली।
करती भव उपचार,घाव भी देती बोली।

पाना-
पाना है निर्वाण मन,कर जीवन निर्वाह।
सत्य शुभ्र कर्तव्य कर,छोड़ व्यर्थ परवाह।
छोड़ व्यर्थ परवाह,सँभालें जो मिल पाया।
और और कर टेर,कर्म का मर्म गँवाया।
शर्मा बाबू लाल,रिक्त कर सबको जाना।
दैव दुर्लभम् देह,बचा अब क्या है पाना।

खोना-
खोना मत जीवन वृथा,संगी सच्चे मीत।
माँ,भाषा भू भाग के,वतन गुमानी गीत।
वतन गुमानी गीत,प्राक इतिहासी महिमा।
आन बान अरु शान,हिन्द हिन्दी की गरिमा।
शर्मा बाबू लाल,दाग मन मानस धोना।
मान धरोहर देश,नहीं आजादी खोना।

यादें-
यादें हैं इतिहास की,रखिये याद सुजान।
खट्टी मीठी बात सब,गौरव मान गुमान।
गौरव मान गुमान,उन्हें हम रखें सँभालें।
कर लें गलती याद,बचें उनसे प्रण पालें।
शर्मा बाबू लाल,सोच फिर अटल इरादे।
करें देश हित कर्म,रहें अपनी भी यादें।

छोटी-
छोटी-सी गुड़िया मिली,जिसे जन्म सौगात।
भाग्यवान वह है पिता,धन्य-धन्य वह मात।
धन्य-धन्य वह मात,पालने शक्ति झुलाती।
सब परिवार प्रसन्न,सुने बोली तुतलाती।
शर्मा बाबू लाल,सुता सुन्दर नख-चोटी।
कुदरत का वरदान,सृष्टि धुर गुड़िया छोटी।

मीठी-
मीठी बोली बोलिये,कोयल जैसे मित्र।
सत्य मान अपनत्व से,उत्तम बना चरित्र।
उत्तम बना चरित्र,भाव उपकारी मानव।
कर्कश बोले काग,कर्म भाषा ज्यों दानव।
शर्मा बाबू लाल,प्रेम रस पिस कर पीठी।
बने दाल पकवान,जिंदगी मानस मीठी।

बातें-
बातें कहती ज्ञान की,दादी नानी मात।
किस्से और कहानियाँ,अनुपम मन सौगात।
अनुपम मन सौगात,याद वे अब भी आती।
भूली-बिसरी बात,सहज इतिहास बताती।
शर्मा बाबू लाल,कठिन कटती जब रातें।
कर लें बचपन याद,पुरातन युग की बातें।

चमका-
चमका मेरा भाग्य जब,पाई कलम सुगंध!
करे हृदय कोटिश नमन,कहे ‘लाल’ यह बंध!
कहे ‘लाल’ यह बंध,शौक बस था कविताई!
लगे प्रेत सम छंद,मिले संजय सम भाई!
अनिता मंदिलवार,विदूषी पावन भभका!
सपन फलित विज्ञात,पटल का यश यूँ चमका!

गीता-
गीता अनुपम ग्रंथ है,कर्म ज्ञान प्रतिमान!
सार्थ करे जो पार्थ का,कहे कृष्ण भगवान!
कहे कृष्ण भगवान,महर्षि व्यास लिखाये!
अष्टादश अध्याय,सात सौ श्लोक समाये!
शर्मा बाबू लाल,समय को किसने जीता!
काल कर्म अधिकार,धर्म पथ दर्शी गीता!

माना-
माना मानुष तन मिला,बल मन भाषा भाव!
मानवता हित कर्म में,रखिये मीत लगाव!
रखिये मीत लगाव,मान यह जीवन नश्वर!
प्राकृत ही बस सत्य,नियंत्रक हैं जगदीश्वर!
शर्मा बाबू लाल,गोल पृथ्वी यह जाना!
जहाँ मिला सद् ज्ञान,उसी को परखा माना!

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

Leave a Reply