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नीयत और बरकत

डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)

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किसी गाँव में तीन भाई थे। वे जाति से कुम्हार थे। उनका पिता सीधा-साधा, ईमानदार,परिश्रमी और विवेकी था। समय से पिता ने अपनी सूझ-बूझ से तीनों के कारोबार और परिवार का अलग-अलग निर्वाह करने का आदेश दे दिया। पिता को पसंद नहीं था कि कारोबार को लेकर तीनों भाइयों और घर में घर-गृहस्थी के कामों को लेकर बहुओं में कलह मचे। पिता के इस निर्णय के विरुद्ध कुछ कहने की क्षमता किसी में न थी,साथ ही साथ पिता ने सबसे छोटे बेटे के साथ रहने का फैसला भी सुनाया।
तीनों भाइयों में गजब की एकता थी। हर काम एक-दूसरे से सलाह मशवरा करने के उपरांत ही करते थे। बाजार-हाट से की जाने वाली खरीददारी से लेकर खदान(मिट्टी की खान)से मिट्टी लाने तक का सभी कार्य एकसाथ करते थे। सम्पूर्ण परिवार खुशी-खुशी अपना जीवन निर्वाह कर रहे था।
एक दिन तीनों भाई तड़के ही खदान से मिट्टी लाने के लिए निकले। खदान गाँव से काफी दूर थी। तीनों ने अपने-अपने गधों को भी साथ ले लिया। तीनों भाई बात-चीत करते-कराते खदान पहुँचे। खदान पहुँचकर पहले कुछ देर आराम कर तीनों ने अपने-अपने गधों पर मिट्टी लदवा ली। खदान का मालिक भी उन्हें देख बहुत खुश होता।
तीनों भाई खदान से अपने गधों के साथ निकल ही रहे थे,तभी खदान के मालिक ने उन्हें रोक पूछा,-‘एक बात पूछूँ क्या ?’
‘हाँ-हाँ! क्यों नहीं ?'(बड़ा भाई कहता है।)
‘सेठ जी आपका और हमारा तो वर्षों का नाता है। आपको पूछने का पूरा हक है।’ (दूसरा भाई कहता है। )
‘सेठ जी आप हमारे पिता जी के बहुत अच्छे मित्र हैं,इसलिए आप हमारे पिता तुल्य ही हैं। हमारे बड़े होने के नाते आप पूरे हक से हमसे कुछ भी पूछ सकते हैं।’ (बड़े ही नम्र स्वर में तीसरा भाई बोला।)
सेठ तीनों की बातें सुन फूला न समाया। कुछ ‘नहीं,मैं बस ऐसे ही…।’
‘सेठ जी यदि दिल में कोई बात आई है तो आप पूछ लीजिए।’ बड़े भाई ने कहा।
‘बेटा तुम तीनों भाई एक ही काम करते हो। तीनों अपने चाक के लिए मिट्टी मुझसे ही लेते हो। तुम तीनों ने बर्तन बनाने की कला भी एक इंसान अर्थात अपने पिता से सीखी है मगर फिर भी तुम तीनों में सबसे छोटे भाई की आमदनी भी अच्छी है और पूरे गाँव में उसके हाथ के बने बर्तनों की माँग भी बहुत है। मिट्टी वही,सिखाने वाला भी वही फिर…? ‘
सेठ जी,वैसे हमने कभी इस विषय में सोचा ही नहीं और इस बात का हमें कोई अंदाजा भी नहीं है। अपना-अपना भाग्य है,और कुछ नहीं।’
तीनों भाई खदान से घर की ओर चल दिए। रास्ते में तीनों ने बात तो की,मगर दिमाग में सेठ जी का ही प्रश्न कौंध रहा था।
तीनों घर पहुँचे। पिता ने उनके चेहरों से भाँप लिया कि,कुछ तो जरूर हुआ है। खाना खाने के पश्चात पिता ने तीनों बेटों को बुलाया।
पिता ने तीनों से पूछा,-क्या बात है ? आज तुम तीनों के चेहरों का रंग क्यों उड़ा हुआ है ? रास्ते में किसी ने कुछ कह दिया क्या ?’
‘नहीं पिता जी ,कुछ खास नहीं।’ (बड़े बेटे ने कहा। )
‘खास नहीं होता तो तुम्हारे चेहरों की हवाइयाँ न उड़ी होती। तुम बोलो छोटे। क्या बात है ?’
पिता के पूछने पर छोटे बेटे ने खदान वाली पूरी घटना सुना दी।
‘बस इतनी-सी बात। (पिता कहता है। )
‘पिता जी आपको इतनी-सी बात लग रही है।’ (मझला बेटा कहता है।)
‘तुम्हारी परेशानी का हल मेरे पास है )। लेकिन जो कुछ भी मैं कहूँ,उसका सही जवाब देना।’
सबसे पहले बड़े बेटे से,-‘चाक पर काम करते समय तुम्हारी भावनाएँ क्या होती है ?’
‘आपका प्रश्न तो बड़ा ही सरल-सा है । इसमें भावनाओं का क्या ? यह तो हमारा पुश्तैनी काम है। इसके अलावा दूसरा कोई काम भी तो नहीं आता। यहाँ भावनाओं की जरूरत ही नहीं।’
फिर दूसरे बेटे से ?
‘चाक पर मिट्टी रखते समय यही ख्याल होता है कि गुजर-बसर हो जाए और बीबी-बच्चों की ख्वाइश पूरी कर सकूँ।’
अंत में तीसरे बेटे से ?
तीसरा बेटा कहता है कि-‘मैं तो यही सोचता हूँ कि गुरु के रूप में आपने जो कुछ सिखाया है,वह कभी व्यर्थ न जाए। पारम्परिक कला का सम्मान सदैव हृदय में रहे तथा मेरे बनाए बर्तन जिस कार्य के लिए खरीदा जाए,वह खरीदने वाले की उम्मीद पर खरा उतरे। कुल्हड़(मिट्टी का गिलासनुमा पात्र)का पानी,पानी पीने वाले की प्यास बुझा सके और सकोरा (मिट्टी की एक प्रकार की छोटी कटोरी) व्यंजन के स्वाद से तृप्त करा सके तथा दीपक की रोशनी हर घर के अँधियारे को दूर कर सके।’
छोटे बेटे के विचार सुन पिता की आँखें द्रवित हो आई। छोटे भाई की नीयत और बरकत (कमी न पड़ना) का राज दोनों बड़े भाई भी समझ गए।

परिचय-डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैL जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैL श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैL महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी-एच.डी. की उपाधि ली है। आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैL रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा ‘हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक’ पुस्तक का प्रकाशन तथा आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंL हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंL आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!` ,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैL यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस,विश्व महिला दिवस पर’ सावित्री बाई फूले’ बोधी ट्री एजुकेशन फाउंडेशन की ओर से जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैL

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