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प्रेम,सद्भावना और भाईचारे का त्यौहार

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

बचपन में जबसे होश संभाला था,तबसे लगाकर आज तक होली के त्यौहार पर इस प्रचलित जुमले को सुनते आ रहे हैं-‘बुरा न मानो होली है,हम मस्तों की टोली है।’
इसका आशय यह है कि,’आज होली का त्यौहार है,हम तुमको रंग लगाएंगे,तुमको इसका बुरा नहीं मानना है।’ बात बिल्कुल सही है,होली रंग-उमंग और मस्ती का त्यौहार है। कहीं पर पढ़ा था कि, ‘धाए की दिवाली और ग़रीब की होली’ यानी धन वाले लोगों की दीवाली और ग़रीब लोगों की होली होती है। यह बात इसलिए कही गई है कि दीवाली का त्यौहार मनाने में खूब पैसों की ज़रूरत लगती है,जबकि होली में आपकी जेब में एक रुपया भी न हो तो ये त्यौहार मन जाता है। जब लोग होली खेलने निकलते हैं तो उस समय जाति-पांति,अमीर-ग़रीब,धर्म-भाषा इन सबका कोई भेद नहीं होता है। सब एक-दूसरे को बड़े प्रेम और सौहार्द से रंग व गुलाल लगाते हैं। वे ये नहीं देखते कि कौन अमीर है और कौन ग़रीब है। यहाँ तक कि भले ही एक-दूसरे को नहीं पहचानते,फिर भी उसे रंग व गुलाल लगाकर प्रेम प्रकट करते हैं। जब सब एक रंग में रंग जाते हैं तो ‘ये होता समानता,प्रेम और भाईचारे का रंग।’ फिर उनको देखकर भला कौन पहचान सकता है कि इनमें कौन गरीब है-कौन अमीर है, कौन हिन्दू है-कौन मुसलमान है।
त्यौहारों का महत्व यही है,त्यौहार आपस में प्रेम और भाईचारा बढ़ाने के लिए ही मनाए जाते हैं, लेकिन एक बात कहना चाहूँगा कि-माना कि होली का त्यौहार ख़ूब खुशियाँ मनाने,रंग लगाने,मस्ती और आनन्द का त्यौहार है,पर हर त्यौहार को मनाने के कुछ नियम व अनुशासन भी हैं,और हमें उन नियम-अनुशासन का पालन करना चाहिए। ‘बुरा न मानो होली है’ का मतलब ये नहीं कि हम जोश में होश खो बैठें। हमें होली खेलते समय कुछ नियमों का पालन भी करना चाहिए। कोई किस ज़रूरी काम से निकला है,उसकी क्या मज़बूरी हैं,हमें समझना चाहिए। कई बार इस नादानी के कारण ‘रंग में भंग हो जाता है’ यानी कोई भी अप्रिय घटना घट सकती है। जैसे कोई व्यक्ति अपने परिवार में किसी बीमार के लिए दवाई की तलाश में निकला है,या अस्पताल जा रहा है,तो ऐसे समय हमको परिस्थितियों को समझना होगा। हमें ऐसे लोगों को जबर्दस्ती रंग नहीं लगाना है,या उन्हें होली खेलने के लिए विवश नहीं करना है। कई लोगों को रंग से परहेज (एलर्जी) रहता है,रंग लगने से उनके चेहरे पर संक्रमण हो जाता है। कई बार लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं, पुलिस-थाने तक बात पहुँच जाती है,ऐसी सब परिस्थितियों से बचें। जो स्वेच्छा से सहर्ष आपके साथ होली खेलना चाहते हैं,उन्हीं के साथ होली खेलें। यही होली का महत्व है-होली प्रेम, सद्भावना और भाईचारे का त्यौहार है,इसलिए होली में प्रेम और सद्भावना के ही रंग लगाएं।

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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