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बुढ़ापा बनाम बेबसी

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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न जीता हूँ न मरता हूँ,
न ही कोई काम का हूँ
बोझ बन कर उनके,
घर में पड़ा रहता हूँ।
हर आते-जाते पर,
नजर थोड़ी रखता हूँ
पर कह नहीं सकता,
कुछ भी घरवालों को।
अपनी बेबसी पर,
खुद ही हँसता रहता हूँ
बहुत जुल्म ढाया है हमने,
लगता उनकी नजरों में।
सब-कुछ अपना लुटाकर,
बनाया उच्चाधिकारी हमने
तभी तो भाग रही दुनिया,
उनके आगे-पीछे।
हम हो गए उनके लिए,
एक बेगाने की तरह
गुनाह हमारा यही है कि,
उनकी खातिर छोड़े रिश्ते-नाते।
इसलिए अब अपनी बेबसी पर,
खुद ही हँस रहा हूँ
खुद को सीमित कर लिया था,
अपने बच्चों की खातिर।
और तोड़ दिए थे,
रिश्ते सब अपनों से
पर किया था जिनकी खातिर,
वो ही छोड़ गए हमको।
पड़ा हुआ हूँ उनके घर में,
एक अनजान की तरह से
और भोग रहा हूँ अब,
अपनी करनी के फलों को।
तभी तो खुद हँस रहा हूँ,
अपनी बेबसी पर लोगों
न जीत हूँ,न मरता हूँ,
न ही कोई काम का हूँ।
बोझ बन कर उनके,
घर में पड़ा रहता हूँll

परिचय–संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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