शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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जैसे सुख सपनों बीच कभी
दु:स्वप्न कई आ जाते हैैं,
फिर उड़ जाती है नींद सदा-
वो स्वप्न हमें तड़पाते हैं।
गर करता हो शुभ कर्म कोई
दुनिया रोड़े अटकाती है,
विकृत मानव हो तो उसको-
ये बात कहाँ पच पाती है।
ये दुनिया है इस दुनिया में
सच्चे भी मिल जाते हैं,
पर सत्यवादियों की बस्ती में-
झूठे भी मिल जाते हैं।
कड़वी होती है सच्चाई
ये सत्य सनातन है जग में,
लेकिन जो लिप्त कुकर्मों में-
क्यों पाँव धरेगा सत मग में।
जो सत्य मार्ग पर चलते हैं
वो नजरों में चढ़ जाते हैं,
पर सत्यवादियों की बस्ती में-
झूठे भी मिल जाते हैं।
पर वक्त आज कुछ ऐसा है
झूठा ही मजे उड़ाता है,
देखा मैंने सच का साथी-
थाने में पकड़ा जाता है।
ये झूठे भ्रष्टाचारी सत्ता
में कुर्सी पा जाते हैं,
सत्यवादियों की बस्ती में-
झूठे भी मिल जाते हैं।
न्यायालय में सच खातिर
गीता की कसम दिलाते हैं,
झूठे आँसू की झलक दिखा-
सब अपराधी बच जाते हैं।
सत्यमेव जयते
लिख कर,हरिशचंद्र
बन जाते हैंl
इन सत्यवादियों की बस्ती में-
झूठे भी मिल जाते हैंll
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।