निगाहें
पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** निगाहें ख़ंजर का भी काम करती है, जिधर उठती है कत्लेआम करती है। इन आँखों की गुस्ताखियां तो देखो- दिल की बातें भी सरेआम करती है। निगाहें मैख़ाने का भी काम करती है, मुहब्बत के पैमाने में जाम भरती है। डूबकर कभी इन आँखों में तो देखो- खुद आँखों … Read more